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आदरणीय जानकी वही जी आप को मेरी लघुकथा में चालें अच्छी लगी. यानि मेरी शतरंज की बिसात सफल हो गई. आभार आप का.
आदरणीय ओमप्रकाश जी विषय अनुरूप तथाकथित धार्मिक व्यक्तियों की वास्तविकता को उजागर करती बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीय ओमप्रकाश जी विषय अनुरूप आपने एक बहुत बेहतरीन लघुकथा प्रस्तुत की है. वाकई धर्म में पाखण्ड इतना भीतर तक घुस चुका है कि देखकर कोफ़्त होती है. ऐसे तथाकथित धार्मिक पाखंडियों की वास्तविकता को आपने इस लघुकथा के माध्यम से बखूबी उजागर किया है. सन्देश देती और सचेत करती बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय मिथिलेश जी आप का कहना सही है. लोग पाखंड के नाम पर भावनात्मक रूप से शोषण करते है. इस के लिए चार आदमियों के सामने नीचा दिखने के लिए उन्ही के सामने चंदा मांग लेते है. यह लघुकथा उसी विसंगति की उपज है. आभार आप का इस लघुकथा पर समीक्षात्मक टिप्पणी देने के लिए.
आदरणीय ओमप्रकाश जी मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय मिथिलेश जी आप की लघुकथा इस पुरे आयोजन में नजर नहीं आई. क्या बात है ? या मैं उसे देख नहीं पाया हूँ. कृपया बताए ? सादर .
मेरा प्रयास यहाँ है आदरणीय-
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/7?commentId=5170231%3AC...
आदरणीय ओमप्रकाश जी खूब कहा आपने ,बधाई . उलटी पड़ गयी चाल ,बिछी रही बिसात .
आदरणीय रीता गुप्ता जी आप को लघुकथा पसंद आई. मेरी मेहनत सफल हो गई. आभार आप को.
आदरणीय नीता कसार दीदीजी आप को मेरी लघुकथा उम्दा लगी. आप की इस सहृदयता के लिए हार्दिक आभार आप का.
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