For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २३ (Now closed with 1126 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

पिछले मुशायरे मे बहुत ख़ूबसूरत गज़लें प्राप्त हुई, जिसमे कि कई शायर जिन्होंने अभी हाल ही मे गज़ल विधा मे कलम आज़माना प्रारम्भ किये हैं, वे भी हैं, यह इस बात का परिचायक है की ओ बी ओ का यह आयोजन धीरे धीरे अपने उद्देश्य मे सफल हो रहा है | कई लोगो को बह्र के साथ समस्यों से भी दो चार होना पड़ा | कहना चाहूँगा कि बह्र मुजारे मुशायरों की एक बहुत ही प्रसिद्द बह्र है और तमाम शायर इसी बह्र मे अपनी गज़लें बड़ी खूबसूरती के साथ पेश करते हैं | इसी बह्र मे और मश्क हो जाये इसलिए इस बार का मुशायरा भी बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ पर ही आयोजित किया जा रहा है | इस बार का मिसरा- ए- तरह भारत  के मशहूर गीतकार नक्श लायलपुरी जी की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया जा रहा है | नक्श लायलपुरी ऐसे शायर थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी लाजवाब गज़लें लिखीं और कई हिट गीत दिए | 24 फरवरी 1928 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलबाद) में जन्मे नक्श लायलपुरी जी का असली नाम जसवंत राय था | बाद मे शायर बनने के बाद उन्हें नक्श लायलपुरी के नाम से जाना गाया | मिसरा है:-

"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"

221  2121 1221 212

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

मफऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन

लो/२/अब/२/तु/१   म्हा/२/री/१/रा/२/ह/१    मे/१/दी/२/वा/२/र/१     हम/२/न/१/हीं/२

(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)

रदीफ: हम नहीं 

काफिया: आर (दीवार, इन्कार, बीमार, तलबगार, खतावार, झंकार आदि)

जिस गज़ल से मिसरा लिया गया है उसका विडियो सबसे नीचे देखा जा सकता है|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें |


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई 2012 दिन रविवार  लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 मई   2012 दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगाजिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ मई २०१२ दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


New "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ के सम्बन्ध में एक सूचना

मंच संचालक 

राणा प्रताप सिंह 

Facebook

Views: 18452

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मज़ाज़ साहब, आपको पहली दफ़ा सुन-पढ़ रहा हूँ. और सच मानिये गर्व हुआ कि शायर को सुन-पढ़ रहा हूँ.

इन शे’र पर विशेष बधाई स्वीकार करें -

आकर जहाँ में भूल गए तुझको ऐ ख़ुदा
कैसे कहें की तेरे गुनाहगार हम नहीं

हम तो क़लम की धार से लड़ते है अपनी जंग
रखते हैं अपने हाथ में तलवार हम नहीं

लेकर चले हैं मेरे जनाज़े को मेरे दोस्त
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं 

इस उम्दा ग़ज़ल के लिये सादर बधाइयाँ


आदरणीय सुल्तानपुरी जी...आपकी ग़ज़ल में एक सूफी लहजा झलक रहा है जो बहुत भाया....हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

सम्मान्य योगराज प्रभाकर जी,
हमारे राजस्थान में एक कहावत है कि ढोलन अगर रोएगी तो भी राग में ही रोएगी. लिहाज़ा हास्यकवि/कलाकार होने के करण मैं कितना भी संजीदा क्यों हो जाऊं, हास्य और व्यंग्य तो मेरे लफ़्ज़ों में आएगा ही.........यदि आप इसे स्वीकार करते हैं और सराहते हैं तो मेरी उपलब्धि है, वरना आपकी बज़्म में बने रहने के लिए गुरू गम्भीर होने का प्रयास भी करूँगा . आखिर हँसी ही तो सबकुछ नहीं है दुनिया में.............आपने प्रत्येक शे'र पर ध्यान दिया ..आपका शुक्रगुज़ार हूँ .
जय हिन्द !

तीसरी ग़ज़ल तक पहुँचते पहुँचते "गुरु गंभीर" तो आप हो ही गए हुज़ूर, :)))

वैसे अगर आप मुझे "सम्मान्य योगराज प्रभाकर जी" की बजाये "सामान्य योगराज प्रभाकर" कह कर संबोधित करें तो मज़ा दोबाला ही हो जाये.

chalo yon hi sahi............agar aapko samman se zyada saamaan pasand hai to,  aapke aadesh ka paalan kiya jaayega ji.......

वाह वाह मजाज़ सुल्तानपुरी साहेब,

आकर जहाँ में भूल गए तुझको ऐ ख़ुदा
कैसे कहें की तेरे गुनाहगार हम नहीं

हम तो क़लम की धार से लड़ते है अपनी जंग
रखते हैं अपने हाथ में तलवार हम नहीं

जय हो आपकी..........बहुत ख़ूब.........बधाई !

shukriya Rajesh Kumari ji...........is mahfil me aapke zariye hi aana hua ..........dhnyavaad

 हाहाहा वो भी अजीब इत्तेफाक था |सच में यहाँ ओ बी ओ में आपका बहुत मन लगेगा 

sach kaha aapne Rajesh ji, man to lag gaya hai................shukriya

ज़र्रे हैं बस ज़रा से, गिरनार हम नहीं
करते हैं  काम लेकिन  करतार हम नहीं

तुमको गुरूर है गर पुरकारियों पे अपनी
हमको भी है सुकूं कि  मक्कार हम नहीं

चोरों से  माल लेकर कहने लगे सिपाही
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं

हरि है हमारे उर में और द्वार अपना मुर्शिद
जलने  से पहले जाते,  हरिद्वार हम नहीं

हमसे ही वोट पाया, हमरा ही दिल दुखाया
झांसे  में तेरे  आएंगे,  इस  बार हम नहीं

अपने लिए तो सिगरेट का लेते पूरा पैकेट
वालिद  का याद रखते, नसवार हम नहीं

हम तो  अवाम हैं जी, करते हैं फ़र्ज़ अपना
सदियों से मांग पाये , अधिकार हम नहीं

मोहतरिम जनाब  तिलकराज कपूर साहेब और  योगराज प्रभाकर साहेब,  ये मेरी तीसरी कोशिश आपकी नज्र कर रहा हूँ . जैसी भी है हाज़िर है.  एक हास्यकवि  की  संजीदगी  इससे ज़्यादा  क्या होगी.....हा हा हा हा 
जय हिन्द !

सब से पहले तो आपकी ज़रखेज़ कलम को मेरा शत शत नमन आद. अलबेला खत्री जी, आपका तीसरा प्रयास भी भाव स्तर पर बेहद कामयाब है. वजन और बहर के हिसाब से भी पहली दो रचनायों से कम नहीं है. सभी अशआर बढ़िया कहे हैं मगर आपके सिगरेट और नसवार वाले शेअर का तो जवाब ही नहीं. इस सद्प्रयास के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल करें.

सम्मान्य योगराज प्रभाकर जी,
सादर प्रणाम
मेरी समझ में सब कलाओं में श्रेष्ठ कला  अपने शब्दों से  औरों का हौसला बढ़ा कर उनसे बेहतर काम करा लेना है . आप इस कला मैं पूर्णतः  निष्णात हैं और मेरा सौभाग्य है कि  आपने मेरी पहली ग़ज़ल  पर भी जिस प्रकार एक एक शे'र  पर अपनी भरपूर दाद और  हिदायत दी  थी  उसी प्रकार आप अब भी मुझे स्नेहसिक्त  उत्साह दे रहे हैं . एक कवि-सम्मेलनीय  कवि साहित्यकारों के  बीच आ कर इससे ज़्यादा भला क्या पा सकता है .

इस बार मेरी कोशिश  बाहर और वज़न के लिहाज़ से  बचकाना ही रही है मैं जानता हूँ परन्तु मेरी इस उपलब्धि पर मैं मस्त हूँ  कि भावों को आपने सराहा .

आदरणीय आपको मेरा हार्दिक धन्यवाद

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
6 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service