हल्ला- गुल्ला ,हंसी-ठिठौली
करती आई टोली है
रंग अबीर से सब जन खेलो
बुरा ना मानो होली है |
स्नेह प्रेम का पर्व है ये तो
एक ही प्रीत की बोली है
जाति धर्म का भेद करो नहीं
सब अपने हम जोली हैं |
मेल मिलाप की होली खेलो
ना कोई ओछा काम करो
जुए नशे के फेर में पड़कर
मत त्यौहार बदनाम करो |
प्राकर्तिक रंगों से खेलो
आँखों का तुम ध्यान करो
शिशुओं और बुजुर्गो के
हितों का सम्मान करो |
हाथों में रंग की पिचकारी
और गुब्बारों की गोली है
रंग अबीर से आओ खेलो
बुरा ना मानो होली है |
बुरा ना मानो होली है |
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मेरे मन ,
बसंत के गाँव चल तो सही
सब कुछ है वहीं
उमंग उल्लास का गाँव है, रे
प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ है वहीं |
सावंरिया की बंसी है
गोपियों का रास
रस से भरी राधा है
मदमाता मधुमास |
प्यार की मनुहार में पगा
सतरंगी यौवन है
गौरी की गारी को
झेल रहे बनवारी हैं |
नेह की पिचकारी है
रंगों की बौछार है
पोखर पड़े गालों पे
चटक गुलाबी प्यार है |
वंशी की लय पे छिड़ा
फागुन का अभिसार है
सखा नंदलाल भये पलाश
वृषभानु लली भई गुलाल है |
बहकी-बहकी राधा है
चहंके-चहंके मुरारी
जोरी-बरजोरी है
बुरा न मानों होरी है |
मोहिनी चोरड़िया
mohini ji holi ka aagaaj achcha hai
बहकी-बहकी राधा है
चहंके-चहंके मुरारी
जोरी-बरजोरी है ....vaah
बुरा न मानों होरी है |
अच्छी रचना है, राजेश कुमारीजी. प्रयासरत रहें.
सादर
aabhar Saurabh ji.
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