चिड़िया रानी //कुशवाहा //
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आंगन मेरे दाना चुगने
चिडियाँ रोज रोज हैं आतीं
कीड़े मकोड़े छुपे घास में
बीन बीन कर वो खा जातीं
चह चह चह चहचाह्ट करतीं
डाली डाली कूदती फिरतीं
नये नये गीत हैं सुनातीं
आंगन मेरे दाना चुगने
चिडियाँ रोज रोज हैं आतीं
शीतल पानी धरा सकोरे
पंख भिगो उनको फडफडाती
मिलती आहट फुर्र उड़ जातीं
आंगन मेरे दाना चुगने
चिडियाँ रोज रोज हैं आतीं
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२८-४-२०१३
मौलिक/ अप्रकाशित
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इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.................... |
सादर आभार
आदरणीय वर्मा जी
प्रोत्साहन हेतु
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