For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पृथ्वी के छोर पर ; लेखक – शरदिन्दु मुखर्जी : एक पाठकीय टिप्पणी -- शुभ्रांशु पाण्डेय

 

 बहुत दिनों से इस पुस्तक के बारे में लिखना चाह रहा था जोकि संस्मरण विधा की एक अनुपम कृति की तरह सामने आयी है. मै शरदिन्दु मुखर्जी की पुस्तक "पृथ्वी के छोर पर" की बात कर रहा हूँ. लेखक ने इस पुस्तक के प्रारंभिक अंशो को ओपेनबुक्सआनलाइन के पटल पर डाला था, मैं तभी से उत्कंठा के साथ इस पुस्तक का इन्तजार कर रहा था. 

 

यात्रा-संस्मरण एक ऐसी विधा है जो अब कम पढने को मिलती है. अल्बत्ता अब यात्रा-संस्मरण के नाम पर सोशल मीडिया में लोगों द्वारा घूम आयी जगहों के ढेर सारे अपलोड हुए फ़ोटों देखने को अवश्य मिलते हैं. किन्तु अपने भावों को ऐसे व्यक्त करना कि पढने वाला शब्दों के माध्यम के उस जगह को देखने लगे या उस स्थान पर होने का आभास करे. जिसे इन्गलिश में To be there vicariously कहते हैंएक अच्छे यात्रा-संस्मरण का पर्याय हुआ करता है. सच कहूँ, तो इस पुस्तक को पढते समय , ऐसे कई मौके आये जब मेरे हाथ अनायास अपने चेहरे से मानों बर्फ़ के कणों को हटाने के लिये उठ जाते थे.

 

शरदिन्दु मुखर्जी जी ने अण्टार्कटिका की अपनी चार यात्राओं को इस पुस्तक में समेटा है. एक ऐसी जगह जहाँ आम आदमी जाने को सोच तक नहीं सकता है, ऐसी स्थान की चार यात्राएँ कर डालना अपने आप में बडी़ बात है. इन चार यात्राओं में लेखक ने दो यात्राओं को प्रमुखता दी है. पहली बार1991-92 में जब वो दल के सदस्य के रूप में श्वेत महाद्वीप पर गये और, दूसरी बार, जब वो अण्टार्कटिका के दूसरे छोर पर वेडेल समुद्री अभियान दल के साथ गये थे. जो क्रमशः पाँचवे और नौवे अभियान दल की बात है. ग्यारहवें अभियान दल का लेखक ने खुद ही नेतृत्व किया था. चौथी बार वोBRICKS संधी के अंतर्गत ब्राजील दल के साथ 2009 में गये थे.

 

हिमालय की उत्तुंग शिखर से शुरु होती कथा सागर को पार करती हुई अण्टार्कटिका तक जाती है. पुस्तक के पहले भाग में लेखक जब पहली बार जहाज से अण्टार्कटिका की लम्बी यात्रा पर निकले तो उनकी हालत बिल्कुल ऐसे बच्चे की थी जो ट्रेन में खिड़की वाली सीट मिलने पर नीम अन्धेरे के बावजूद आँखे गड़ा-गड़ा कर बाहर देखने की कोशिश करता है. भागती ट्रेन के कारण चलती हवा से चेहरे पर अपने बाल उड़ने देता है. ये एक अलग अनुभव होता है. लेखक अपनी यात्रा जहाज के डेक पर खड़े हो कर मानों ऐसे ही अनुभूतियों को जीना चाहता है. कैप्टेन ने बावज़ूद इसके कई बार मना किया हो ! इस पुस्तक में कई ऐसे अनुभव हैं जिसे भोगना आम जन के लिये सम्भव नहीं है.

 

ऐसा ही एक अनुभव है विषुवत रेखा को पहली बार पार करने पर मनाया जाने वाला उत्सव, जो अपने आप में अनोखा है. मेरी समझ से इसकी शुरुआत पुराने नाविकों को लम्बी समुद्री यात्राओं की एकरसता से उपजने वाले नैराश्य को निकालने के लिये की गयी होगी. लेकिन आज भी इस परम्परा को जारी रखना रोचक बात है. लेखक का पहली बार हिमखण्ड को देखना, पेन्ग्विन को देखना, ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें पाठक पढ़ते हुये उतना ही रोमांचित हुआ महसूस करता है जितना लेखक को होता है. 

 

अपनी पहली यात्रा में लेखक कई ऐसी बातों को समझाता जाता है, जिसे आप अण्टार्कटिका के अलावा शायद ही किसी जगह देख-समझ सकते हैं. सर्वप्रथम तो अण्टार्कटिका का उल्लेख होने पर सफ़ेद बर्फ़ और उस पर चलती पेंग्विन की पंक्तियां ही याद आती हैं. लेकिन एक बात जो केवल मह्सूस की जा सकती है  वह है वहाँ की ठंड. गंगा के मैदानी इलाके का कोई आम भारतीय पारे को शून्य से 1 या डिग्री नीचे जाने के बारे में ही सुनता है. उस तापमान का अनुभव भी कम ही लोगों को हो पाता है. लेकिन शून्य से 30 या 40 डिग्री नीचे के बारे में बात करना और उसे झेलना आपने आप में एक दहला देने वाला अनुभव है. उस तापमान पर मुँह में रखा गया एक स्क्रू कितना घातक हो सकता है, इसका उल्लेख लेखक ने बडे़ रोचक ढंगसे किया है.

 

जैसा मैने कहा है्,  अपने पहले अभियान में लेखक ने अण्टार्कटिका की हर बात को बहुत विस्तृत और रोचक रुप में प्रस्तुत किया है. चाहे वो वहाँ चलाने वाली तेज हवा हो या बर्फ़ के बीच की खाली जमीन. दक्षिण गंगोत्री की भौगोलिक स्थिति हो या आसपास की झीलआसमान में दिखने वाले रंगीन प्रकाश का प्रभाव हो या समुद्र की दरार से आने वाली गोली की आवाज. समुद्र का नीला रंग हो या अण्टार्कटिका के पास का धुसर रंग हो. या फिर, अण्टार्कटिका के पास का आसमान, जो नीला नहीं बल्कि काला होता है. यह स्वप्निल नहीं अपितु अद्भुत संसार होता है. 

  

एक ऐसे महाद्वीप पर, जहाँ अभी तक संसार के सारे देश अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पायें हों, वहाँ अन्य देशों के सदस्यों के साथ सम्बन्ध रखना अपने आप में महत्वपूर्ण है. सोवियत गणराज्य का स्टेशन भारतीय स्टेशन का निकटम पडो़सी स्टेशन था. दूसरा नज़दीकी पडो़सी उस समय का पूर्वी जर्मनी का स्टेशन था. ये दोनो next door neighbour भी लगभग 100 कि.मी. से ज्यादा दूर थे. भारतीय स्टेशन का तात्कालिक USSR  के स्टेशन से सम्बन्ध ज्यादा मधुर थे. ये जान कर बहुत अच्छा लगा कि न केवल आपात-स्थिती में अपितु अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी सभी देश एक-दूसरे से सहयोगी भाव रखते हैं. 

 

लेखक की दूसरी यात्रा को साहसिक यात्रा कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. जिस जहाज से वो इस बार वेडेल समुद्र अभियान को जा रहे थे, वो बहुत छोटा जहाज था. लेकिन जमे समुद्र को तोड़ने में इसका जबाब नहीं था. लेखक ने बहुत ही दार्शनिक अंदाज में विषम परिस्थितियों से लड़ने का एक मंत्र दिया है. उस यात्रा में जब जहाज विषुवत रेखा के दक्षिण रोरिंग फ़ोर्टिस या उसके बाद, अशांत समुद्र को, झेल रहा रहा था तो लेखक के कई साथी इस भयावह मौसम में जहाज के रोलिंग और पिचिंग में उल्टी से बीमार पड़ रहे थे और घबराहट उनके ऊपर हावी हो रही थी. ऐसे में लेखक ने अपने साथियों को एक आसान सा मंत्र दिया था. कि, तूफ़ान को अपने उपर हावी न होने दें, बल्कि उससे लड़ पड़ें. लेखक स्वयं डेक पर और ब्रिज पर खडे़ हो कर उस भयावह मौसम का सामना करने का हौसला दिखाते थे. यह बात अपने आप में लेखक के पूरे व्यवहार और उनकी दृढ़ सोच को दर्शाता है. ऐसी ही अन्य घटनाओं का उल्लेख भी लेखक ने इस यात्रा के वर्णन में किया है, जब वो फ़िल्चनर शेल्फ़ की खुली दरारों में ठोस आधार को तलाशने के लिये बिना किसी अन्य सहायता के हेलिकाप्टर से कूद पडे़ थे और उन्होंने हेलिकाप्टर के अन्य सहयोगियों को ये बताया था कि अगर वो वापस बर्फ़ पर न दिखें तो ये समझ लिया जाये कि वो जगह उतरने के लिये सही नहीं है और वे उस स्थान पर तनिक न रुकें, न ही उतरने की कोशिश करें. वर्ना दुर्घटना हो सकती थी. यह सोच और कथन लेखक के नायकत्व को दर्शाता है. जिसे लेखक ने बडे़ सहज भाव से लिया तथा लिखा है. पाठक की घबराहट को संवेदित करने के बदले लेखक उस परिस्थिति को लेकर इस बात की तसल्ली देते हैं, कि उस छलांग में वे फ़िल्चनर-शेल्फ़ पर पैर रखने वाले पहले भारतीय बन गये थे.

  

इसी तरह लेखक की दृढ़ता उनके तीसरे अभियान में दल नेता के रुप में देखने को मिलती है, जब आग के कारण उनके द्वारा संग्रहीत तेल, मक्खन और वसा भी जल कर खाक हो गये थे. लेखक ने दल नायक के रुप में अपने उक्त अभियान दल को तेल, मक्खन और वसा न खाने के लिए एक प्रकार से प्रण दिलवा देते हैं. जबकि भारत सरकार ने रुस के केन्द्र से मक्खन खरीदने की मजूरी दे दी थी. लेकिन पूरे भारतीय दल ने बिना मक्खन के ही खाने का प्रण कर लिया था. ऐसा कुछ करना और अपने सदस्य मित्रों से पालन करवा लेना कुछ लोगो को पागलपन लग सकता है. किन्तु आत्मनियंत्रण कैसे साधा जाता है, प्रतिष्ठा की लडा़ई कैसे जीत ली जाती है इसका सुन्दर प्रदर्शन होता है. दल का एक नायक कैसे विषम परिस्थितियों को अपने समूह के लाभ के लिए मोड सकता है. इसे बडे़ ही रोचक अन्दाज़ में बताया है. एक मोड़ वह भी आता है जब अभियान दल का एक सदस्य एकाकीपन से घबरा कर आत्महत्या तक का इरादा कर लेता है. इस प्रकरण के दौरान लेखक ने न केवल वहाँ की विषम परिस्थितियों का उल्लेख किया है अपितु वहाँ जाने पर सदस्यों की मानसिक स्थिति का भी जिक्र किया है. यहाँ भी लेखक ने अत्यंत शांत भाव से उस सदस्य की न केवल काउन्सिलिंग करवायी है, अपितु किसी अन्य सदस्य को इस बात की जानकारी भी नहीं पड़ने दी है. यह लेखक शरदिन्दू जी की संवेदनशीलता का सुन्दर उदाहरण है.

 

लेखक ने अपने तीसरे दौरे को बहुत कम जगह दी है. शायद अपने दल नेता बनने को उन्होंने एक सामान्य घटना माना है और इसका अधिक उल्लेख नहीं किया है. 

 

चौथी यात्रा लेखक के लिए बहुत ही स्मरणीय अनुभव रही है. लेखक का सारा सामान देश और प्लेन बदलने में गायब हो जाता है और अंत तक नहीं मिलता है.  एक ऐसे देश में जहाँ वो अकेला है. तथा, उनकी भाषा या अंग्रेजी समझने वाला भी कोई नहीं है. 3 डिग्री मे एक हाफ़ स्वेटर में सड़क पर खडे़ व्यक्ति की मनोदशा को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है. लेकिन, जब आप अपने ध्येय के प्रति समर्पित रहते हैं तो कहीं से भी सहायता मिल जाती है. वही लेखक के साथ भी होता है. निस्संदेह, अपनी तीसरी और चौथी यात्रा को लेकर लेखक एक अलग पुस्तक ही लिख सकते हैं. 

 

जैसा कि मैने पहले ही कहा है, पहली यात्रा में लेखक एक बालक के समान अनुभव बटोरता हुआ उत्सुक दिखता है और उसीको वह साझा करता है. किन्तु आगे की यात्राओं में लेखक का उत्सुक जिज्ञासु मन वाला बच्चा बडा़ हो जाता है और वह पाठक को अपनी बात जरा technical ढंग से समझाता है. लेखक के साथ-साथ पाठक भी परिपक्व होता जाता है. जैसे किसी जगह के बारे में अक्षांश और देशांतर के कोऑर्डिनेट के साथ बताना. इसी ढंग में लेखक ने मारिशस के इतिहास को भी प्रस्तुत किया है. अण्टार्कटिका पर महिलाओं के जाने की बात भी उन्होने बडे़ रोचक ढंग से बतायी है. तथा ये सुन कर सीना चौडा हो जाता है कि भारत ने अपने तीसरे अभियान दल में ही महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित कर दी थी. 

 

इस पुस्तक को पढ़ते हुए यह स्पष्ट होता है, कि लेखक ने केवल अण्टार्कटिका के बारे में नहीं बताया है. उन्होने साथ-साथ अपनी रोमांटिक ऐंगिल को भी आगे बढाया है. जिस पेन-फ़्रेण्ड को अपने पहले यात्रा में इन्होंने केवल पेन-फ़्रेण्ड बताया है, आगे की यात्राओं में ये साफ़ हो जाता है, कि वो नीता उनकी जीवन संगिनी बन गयी है. हालाँकि इस अद्भुत प्रेम कहानी पर एक पुस्तक अलग से लिखी जा सकती है. मैं दोनो ही व्यक्तियों से मिल चुका हूँ और नम्रतापूर्वक ऐसी किसी पुस्तक की फ़रमाइश तो कर ही सकता हूँ. मैं ऐसा इसलिये कह पा रहा हूँ कि उनकी वो पुस्तक भी कई लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बनेगी.

 

लेखक के इस पुस्तक को पढने के बाद आप अपने में एक नया जोश भरा हुआ पाते हैं. परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अगर आप अपने मिशन के प्रति समर्पित हैं तो सारी समस्याओं का समाधान मिलता जायेगा. इसके साथ-साथ एक बात जो लेखक ने रेखांकित की है, वो ये कि जब आप अपने मिशन में लगे हों तो किसी भी प्रकार का व्यवधान यहाँ तक कि पारिवारिक व्यवधान भी आपको कमजोर कर सकता है. अपने साथी वैज्ञानिकों के माध्यम से अन्य लोगों से लेखक कहता भी है, कि जब आप अपने देश के लिये काम कर रहे हों, तो मन में सबसे पहले देश का ही विचार आना चाहिए. धन-अर्जन आदि और अन्य बातें बहुत तुच्छ सी हो जाती हैं. 

 

सच कहें तो ’पृथ्वी के छोर पर’ एक अत्यंत प्रेरणादायक पुस्तक है, जो अंटार्कटिका को लेकर अपने आप में जानकारियों का सागर है. हम शरदिंदु जी की अन्य पुस्तकों, जिसका उपर्युक्त पंक्तियों में वर्णन हो चुका है, का बेसब्री इन्तजार कर रहे हैं. 

 

बहरहाल, यह पुस्तक इलाहाबाद के अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. जिसे प्रकाशक ने पाठकों को दिल से उपलब्ध कराया है.

Views: 596

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service