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खिलौने वाली गन (लघुकथा) – शुभ्रान्शु पाण्डॆय
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“पापा, वो वाली गन ! देखो न, कितनी असली सी लगती है !” – सुपर बाज़ार की भीड़-भाड़ में बिट्टू उस खिलौने वाली गन के पीछे हठ कर बैठा था ।
“नहीं बेटा.. हमें वो चावल वाली सेल के पास चलना है । जल्दी करो, नहीं तो वो खत्म हो जायेगा..”
“पापा, इस पर भी सेल की बोर्ड लगा रखी है.. पापा ले लो ना…प्लीऽऽज..”,
बिट्टू की मनुहार भरी आवाज सुन कर किसी का मन न रीझ जाये । लेकिन रमेश अपने एक मात्र हजार…
ContinuePosted on March 22, 2016 at 9:30am — 10 Comments
“तुम लोग बहू से ही ठीक रहती हो. बात-बात पे वो डांटा करती है न, तभी तुम लोगों का दिमाग ठंढा रहता है ! आ रही है न, गर्मी छुट्टी के बाद.. कल-परसों में.... ,” - तमतमाती हुई सुभद्रा महरी पर बरसती जा रही थी.
“माँजी, साफ तो मैं कर ही रही थी.. ” - महरी ने बात सम्भालना चाहा.
“चुप रहो ! महीने भर का लेना-देना सब बेकार कर दिया. जरा सा कुछ कहा नहीं कि टालना शुरु.. ”
अखबार पर से आँखे उठा कर रमेश ने पत्नी की ओर देखा. इधर तीन-चार दिनों से…
Posted on July 4, 2015 at 8:00pm — 10 Comments
“दोनो पैरों के अँगूठों में बन्धी रस्सी भी खोल दो, चिता पर कोई भी गाँठ या बन्धन नहीं होता..”
“चिता पर सारे बन्धन खत्म हो जाते हैं” - किसी और ने कहा.
सुनते ही राकेश पत्नी प्रिया और उसके बीच के सबसे बडे़ बन्धन एक साल के बेटे को अपने सीने से लगाये प्रिया के निर्जीव शरीर को चुपचाप देखता हुआ फिर से फ़फ़क पड़ा.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Posted on July 1, 2015 at 12:00am — 22 Comments
“अरे, पेपर कहाँ है ?” - राजेश ने पूछा.
“तुम्हे भी नहीं पता ? मुझे लगा हमेशा की तरह ले कर चले गये होगे फ़्रेश होने. कितनी बार कहा है सबसे बाद में पढा करो. तुम्हारे बाद कोई छूना नहीं चाहता है उसे.”
“कान्ता बाईऽऽऽ.. पेपर आया था आज ?” - संगीता चीखी.
“हां, मैने पेपर ले कर बेड पर रख दिया है..”
उधर बेड पर नन्हा चुन्नू पेपर ’पढ़ने’ में लगा था.
पहला पन्ना फ़्लिपकार्ट का ऐड था, जो बिस्तर के एक कोने में पडा़ था. हेड लाइन.. . सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर… इसके आगे सुबह…
ContinuePosted on June 20, 2015 at 10:30pm — 17 Comments
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Comment Wall (12 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
" जन्मदिन की हृदय से शुभकामनायें आदरणीय शुभ्रांशु जी "
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
पाठकों से इस रचना ’और मैं कवि बन गया..’ को प्रशंसा मिली थी. आज इसकी तकनीकि को प्रतिष्ठा मिली है. इस विस्तार हेतु हार्दिक शुभाशीष और असीम शुभकामनाएँ. ..
शुभ्रांशु जी,
मई "महीने की सर्वश्रेष्ट रचना पुरस्कार" के लिए हार्दिक बधाई
सदस्य कार्यकारिणीrajesh kumari said…
और मैं कवि बन गया (हास्य)"......... शुभ्रांशु पाण्डेय जी आपकी इस सुन्दर रचना को माह की सर्वश्रेष्ठ रचना घोषित करने पर आपको बहुत बहुत बधाई
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की रचना "और मैं कवि बन गया (हास्य)" को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना (Best Creation of the Month) पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको पुरस्कार राशि रु ५५१ और प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस नामित कृपया आप अपना नाम (चेक / ड्राफ्ट निर्गत हेतु) तथा पत्राचार का पता व् फ़ोन नंबर
admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
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