“अरे, पेपर कहाँ है ?” - राजेश ने पूछा.
“तुम्हे भी नहीं पता ? मुझे लगा हमेशा की तरह ले कर चले गये होगे फ़्रेश होने. कितनी बार कहा है सबसे बाद में पढा करो. तुम्हारे बाद कोई छूना नहीं चाहता है उसे.”
“कान्ता बाईऽऽऽ.. पेपर आया था आज ?” - संगीता चीखी.
“हां, मैने पेपर ले कर बेड पर रख दिया है..”
उधर बेड पर नन्हा चुन्नू पेपर ’पढ़ने’ में लगा था.
पहला पन्ना फ़्लिपकार्ट का ऐड था, जो बिस्तर के एक कोने में पडा़ था. हेड लाइन.. . सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर… इसके आगे सुबह का पीया हुआ दूध उल्टी की शक्ल मे रिसते हुए स्पोर्टस पन्ने पर बीसीसीआई के अफ़्रीकी अकाउण्ट और उसके लेन-देन तक पहुँच गया था. शेयर बाजार तो कब का चुन्नू के प्रयासों से दो फाड़ हो चुका था. एडिटोरियल के तीखे सवालों पर अब चुन्नू बिना चड्डी दम लगा रहा था. थोडी-बहुत सफलता मिल भी गयी थी. शहर और आस-पास की खबरें उसके दम के पहले रिसाव से ही गीली हो चुकी थीं.
कान्ता बाई ने पेपर और चुन्नू दोनों को धीरे से उठाया. अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों से चुन्नू के पिछवाड़े की सफाई की और आज के ’देश’ ही नहीं समूचे ’विश्व’ को बाहर के डस्टबीन में डाल दिया.
************************
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
भाई शुभ्रांशु, इस लघुकथा की धार की गहनता बहुत ही अधिक है. यह अंदर बहती हुई बहुत तीव्र है लेकिन ऊपर से कितनी आत्मीय सी शान्त दिखती है. ऐसे इंगित ही रचनाओं को कालजयी बनाते हैं. ऐसी लाक्षणिक रचनाएँ ही वृहद पाठक वर्ग बनाती हैं.
लघुकथा का जो एक प्रारूप सा बन गया है. उससे इतर ऐसे पैने व्यंग्य को लघुकथा में महसूस करना आश्वस्त कर रहा है कि ओबीओ का मंच सम्पूर्णता में किसी विधा को प्रश्रय देता है.
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
हा हा हा
बहुत बढ़िया व्यंग्य है बिलकुल सटीक
लघुकथा जैसी कठिन विधा में इतनी जबरदस्त पकड़
आदरणीय सुभ्रांशु जी आपकी प्रतिनिधि रचनाओं में से एक तो आज मैंने पढ़ ली
आपने लघुकथा के एक नए आयाम से परिचित कराया
आपका आभार
आदरणीय वीनस भाई.
कथा पर विचार देने के लिये आभार. आरक्षण के लिये दिन भी अब निश्चित कर दिया है. शीघ्र ही आपकी इच्छा पूर्ति करने की कोशिश करुँगा.
सादर
आदरणीय विनय जी.
आपके विचारों हमेशा प्रतिक्षा रहती है . उत्साहवर्धन के लिये आभार.
सादर.
आदरणीया कान्ता जी,
रचना पर आने केलिये आभार.
सादर.
आदरणीया शशि जी,
रचना पर अपने विचार देने और उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद.
सादर.
आदरणीय विजय शंकर जी,
रचना पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय धरमेंद्र जी,
रचना पर आने और उत्साह वर्धन के लिये आभार.
सादर.
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
रचना पर् अपने विचार देने के लिये धन्यवाद. चित्र से काव्य के आयोजन में आपनी ओर से एक लघु कथा देने की कोशिश कर रहा हूँ. पिछले चित्र से काव्य आयोजन के बाद भी सम्बल नाम से एक लघु कथा दी थी. आपको पसंद आयी इसके लिये आभार.
सादर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online