“दोनो पैरों के अँगूठों में बन्धी रस्सी भी खोल दो, चिता पर कोई भी गाँठ या बन्धन नहीं होता..”
“चिता पर सारे बन्धन खत्म हो जाते हैं” - किसी और ने कहा.
सुनते ही राकेश पत्नी प्रिया और उसके बीच के सबसे बडे़ बन्धन एक साल के बेटे को अपने सीने से लगाये प्रिया के निर्जीव शरीर को चुपचाप देखता हुआ फिर से फ़फ़क पड़ा.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कहन और विन्यास दोनों गठे हुए हैं. ’बन्धन’ शीर्षक पर इतना मार्मिक लघकथा हुई है कि बरबस मुँह से वाह निकल उठता है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें, शुभ्राशु भाई.
शुभकामनाएँ
आदरणीय ओमप्रकाश जी,
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय गोपाल जी,
रचना पर आये और विचार दिया इस बात के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय जवाहर लाल जी,
कथा आपके मन और हृदय को स्पर्श कर सकी.
रचना सफ़ल रही.रचना पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय मिथिलेश जी,
आपके विचार की प्रतिक्षा रहती है. रचना पर आने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय डा आशुतोष जी,
रचना पर आने और अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय कृष्ण जी,
रचना पर आने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीया राजेश जी,
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. आत्मिक बन्धन तो व्यक्तिगत होते हैं. बान्धने और बन्धने वाले के परस्पर सम्बन्ध पर निर्भर करता है. एक बार पुनः रचना पर आने के लिय धन्यवाद.
सादर.
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