For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बन्धन (लघु कथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

“दोनो पैरों के अँगूठों में बन्धी रस्सी भी खोल दो, चिता पर कोई भी गाँठ या बन्धन नहीं होता..”
“चिता पर सारे बन्धन खत्म हो जाते हैं” - किसी और ने कहा.

सुनते ही राकेश पत्नी प्रिया और उसके बीच के सबसे बडे़ बन्धन एक साल के बेटे को अपने सीने से लगाये प्रिया के निर्जीव शरीर को चुपचाप देखता हुआ फिर से फ़फ़क पड़ा.
*************************
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 905

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 8, 2015 at 7:28pm
इसे लघु कथा से ज्यादा लघुतम कथा कहना अतिश्युक्ति नहीं होगी इतने कम शब्दों में विशाल अभिव्यक्ति आदरणीय।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 7:23pm

कहन और विन्यास दोनों गठे हुए हैं. ’बन्धन’ शीर्षक पर इतना मार्मिक लघकथा हुई है कि बरबस मुँह से वाह निकल उठता है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें, शुभ्राशु भाई. 

शुभकामनाएँ

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 10:05am

आदरणीय ओमप्रकाश जी, 

कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 10:04am

आदरणीय गोपाल जी,

रचना पर आये और विचार दिया इस बात के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 10:03am

आदरणीय जवाहर लाल जी, 

कथा आपके मन और हृदय को स्पर्श कर सकी. 

रचना सफ़ल रही.रचना पर अपने विचार देने के लिये आभार.

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 9:57am

आदरणीय maharshi tripathi जी, 

कथा पर आने के लिये आभार. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 8:55pm

आदरणीय मिथिलेश जी, 

आपके विचार की प्रतिक्षा रहती है. रचना पर आने के लिये आभार. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 8:53pm

आदरणीय डा आशुतोष जी, 

रचना पर आने और अपने विचार देने के लिये आभार. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 8:41pm

आदरणीय कृष्ण जी, 

रचना पर आने के लिये आभार. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on July 3, 2015 at 8:21pm

आदरणीया राजेश जी, 

कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. आत्मिक बन्धन तो व्यक्तिगत होते हैं. बान्धने और बन्धने वाले के परस्पर सम्बन्ध पर निर्भर करता है. एक बार पुनः रचना पर आने के लिय धन्यवाद.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service