For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्ता का विकेन्द्रीकरण (लघुकथा) // -शुभ्रांशु

“तुम लोग बहू से ही ठीक रहती हो. बात-बात पे वो डांटा करती है न, तभी तुम लोगों का दिमाग ठंढा रहता है ! आ रही है न, गर्मी छुट्टी के बाद.. कल-परसों में.... ,” - तमतमाती हुई सुभद्रा महरी पर बरसती जा रही थी.
“माँजी, साफ तो मैं कर ही रही थी.. ” - महरी ने बात सम्भालना चाहा. 
“चुप रहो ! महीने भर का लेना-देना सब बेकार कर दिया. जरा सा कुछ कहा नहीं कि टालना शुरु.. ”


अखबार पर से आँखे उठा कर रमेश ने पत्नी की ओर देखा. इधर तीन-चार दिनों से वो कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी-सी हो गयी है. 
तभी रमेश की नजर एक समाचार पर पड़ी - "… नेतृत्व में युवाओं के बढते प्रभाव से पार्टी के बुजुर्ग नेताओं में खलबली…" 
सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है. 
**************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on July 15, 2015 at 8:46pm

वाह वाह भाई बहुत सुन्दर परिभषित किया विकेंद्रीकरण घरोँ

Comment by Shubhranshu Pandey on July 15, 2015 at 6:35pm

कथा पर आने और विचार देने के लिये बहुत बहुत आभार मिथिलेश जी.

Comment by Omprakash Kshatriya on July 14, 2015 at 8:00am

आदरणीय Shubhranshu Pandey  जी

//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है. // का सन्देश देती प्रेरक लघुकथा .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 14, 2015 at 6:01am

//सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण मची ये खलबली इन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी बदस्तूर हुआ करती है.// 

आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , सादर 

कोई अछुता कैसे रह सकता है ? कथा हेतु बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:52pm

अपनी-अपनी सत्ता और अपने-अपने मायने ! जिसकी जितनी पहुँच होती है उतने में ही अपना पैर फैला कर रखना चाहता है. बिम्बों के माध्यम से एक आम घटना को बेहद सफल आयाम मिला है, भाई शुभ्रांशु जी. इस विशिष्ट दृष्टिकोण केलिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
शुभ-शुभ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 6, 2015 at 8:19pm

बहुत ही सुन्दर कटाक्ष ! आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 6, 2015 at 7:26pm

आदरणीय Shubhranshu Pandey जी रचना प्रभावी है .....बधाई 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2015 at 6:24pm

वाह, वाह, अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल कीजिए

Comment by विनय कुमार on July 6, 2015 at 12:50pm

वाह , बड़ी पैनी नज़र | शीर्षक भी कमाल का है , बहुत बहुत बधाई आदरणीय इस लघुकथा के लिए .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 12:41pm

हा हा हा 

आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी बेहतरीन लघुकथा हुई है.... सांस बहू के संबंधों में आये बदलाव को जिस बारीकी से आपने पकड़ा है, चकित हूँ. बहुत बार देखी गई स्थिति है लेकिन जिस सूक्ष्म दृष्टि से उसका आपने विश्लेषण किया है वह कमाल है. 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service