For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Mohan Sethi 'इंतज़ार'
  • Male
  • Sydney NSW
  • Australia
Share on Facebook MySpace

Mohan Sethi 'इंतज़ार''s Friends

  • Hari Prakash Dubey
 

Mohan Sethi 'इंतज़ार''s Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Sydney, Australia
Native Place
देहरादून

Mohan Sethi 'इंतज़ार''s Blog

माँ ........इंतज़ार

गंगा तो पवित्र है

इन्सानों के दुष्कर्म

अनवरत बहाना इसका चरित्र है

मैली पड़ जाती है

फिर भी बहती जाती है

आखिर माँ है

चुप चाप सहती जाती है

मगर दूषित करने वाले

माँ पुकार कर भी

ज़हर पिलाते जाते हैं

दुखों का अम्बार जुटाते जाते हैं

कहाँ किसी को ये प्यार दे पाते हैं

स्वार्थ ही तो कर्म है इनका

बस यही धर्म निभाते जाते हैं

इक दिन ये राख़ बन जाएंगे

माँ से मिलने फिर वापस आएंगे

किस मुहं से मुक्ति मांग पाएंगे

मगर गंगा तो आखिर गंगा माँ…

Continue

Posted on August 4, 2015 at 7:56am — 21 Comments

गुज़रा ज़माना ........इंतज़ार

कभी ऐसे भी दिन थे

होती है सोच हैरानी

बचपन हरा कर

जब जीती थी मासूम जवानी !

याद है जब मैंने

चूमी थी तेरी पेशानी

आज भी भुला नहीं पाता

है मुझ को हैरानी ! 

वो आंखें मिलाना

तेरा हाथ छूने के

नादान बहाने जुटाना

तेरी नज़र बचा कर

तुझे तकते जाना !

हवा के झोंके से

जब तेरा पल्लू मुझे छू जाना

उफ़ ...तुझ पे इसकदर मर जाना

क्यूँ होता है

दिल ऐसा दीवाना

हैरां हूँ वो भी क्या था ज़माना ! 

ये बात है इतनी पुरानी

आज…

Continue

Posted on July 30, 2015 at 7:00am

आवारा बादल .......इंतज़ार

मैं हूँ एक आवारा बादल

और मुझे एहसासों से

तरबतर करता पानी हो तुम

अपने आगोश में ले तुम्हें

मस्त हवाओं से हठखेलियाँ करता

दूर तक निकल जाता हूँ

अपार उर्जा से दमकता

गर्जन करता

इस मिलन का उद्घोष करता हूँ

मगर फिर ना जाने क्यूँ

तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे

बरस जाती हो अपने बादल को छोड़

और देखो ...मैं बिखर जाता हूँ

मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है

जानता हूँ

इस बंज़र ज़मीन को भी

तुम्हारी प्यास रहती है

अगर तुम न बरसो

तो नया सृजन कैसे…

Continue

Posted on July 14, 2015 at 4:06pm — 6 Comments

कव्वा चला शायर की चाल ......

2 2 2 1 / 2 2 2 2 / 2 1 222



दिल में शायरी का जब भी दोर उट्ठेगा

सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!

पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई

देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!

तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी

दिल में एहसासों का बबंडर जोर उट्ठेगा !!

जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से

तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !!

बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से

वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का…

Continue

Posted on July 14, 2015 at 9:34am — 21 Comments

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 10:02pm on April 16, 2015, Dr. Vijai Shanker said…
आदरणीय मोहनसेठी " इन्तजार " जी। आपकी प्रस्तुति, " सूने पन्ने पे तेरा नाम " माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चुनी गई, बड़ी खुशी हुई। आपको मेरी और से बहुत बहुत हार्दिक बधाई, सादर।
At 9:45pm on April 16, 2015,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय मोहन सेठी 'इन्तजार' जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी " सूने पन्ने पे तेरा नाम" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
21 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service