For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आवारा बादल .......इंतज़ार

मैं हूँ एक आवारा बादल
और मुझे एहसासों से
तरबतर करता पानी हो तुम
अपने आगोश में ले तुम्हें
मस्त हवाओं से हठखेलियाँ करता
दूर तक निकल जाता हूँ
अपार उर्जा से दमकता
गर्जन करता
इस मिलन का उद्घोष करता हूँ
मगर फिर ना जाने क्यूँ
तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे
बरस जाती हो अपने बादल को छोड़
और देखो ...मैं बिखर जाता हूँ
मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है
जानता हूँ
इस बंज़र ज़मीन को भी
तुम्हारी प्यास रहती है
अगर तुम न बरसो
तो नया सृजन कैसे हो
मगर लौट आती हो एक बार फिर
सब को भिगो कर अपने अशआरों से
अब लौट आना जल्दी
आ मिलना मुझको
और बना देना मुझको
फ़िर वही काला बादल
जो घड़ घड़ाता
तुम्हें आगोश में ले
प्रफुल्लित चलता है दूर तक....
देखो ...जनम जनम का
हमारा ये निरंतर मिलन नियती भी है

************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 16, 2015 at 3:54pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप की उपस्थिति एवं सराहना के लिये हार्दिक आभार ...सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 3:44am

आदरणीय मोहन सेठी जी प्रकृति के बिम्बों से गहन भावाभिव्यक्ति शाब्दिक हुई है इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 15, 2015 at 4:39pm

आदरणीया pratibha pande जी आपका हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 15, 2015 at 4:36pm

आदरणीय  Sushil Sarna जी तहे दिल से शुक्रिया आपका ...सादर 

Comment by pratibha pande on July 15, 2015 at 8:16am

मिलन  उनकी नियति  है  और  उनका  बिछुड़ना  धरती  की  ख़ुशी I  बहुत  गूढ़  भावों  के साथ  सशक्त  रचना I बधाई  स्वीकार  करें

अ०  मोहन  सेठी जी  

Comment by Sushil Sarna on July 14, 2015 at 7:45pm

तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे
बरस जाती हो अपने बादल को छोड़
और देखो ...मैं बिखर जाता हूँ
मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है
वाह आदरणीय बहुत ही गहन भावों का चित्रण किया आपने … हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service