छत्तीसगढ़ी गजल
बहर -212 212 122 222
चार दिन के सगा घरोधिया होगे ।
मोर घर के मन ह, परबुधिया होगे ।
का जादू करंजस, अइसन होईस रे
अपन समझेव, तेन बहुरूपिया होगे ।
कोनो ल सुहावत नईये मोरो भाखा
कइसन मोर लईका मन शहरिया होगे ।
घात फबयत रहिस भाखा के लुगरा
का करबे ओही लुगरा फरिया होगे ।
मोर बडका बड़का रहिस महल अटारी,
आज कइसन सकला के कुरिया होगे ।
जेन लईका ल पढायेंव तेने कहा अड़हा
लाज म मोर मुंह करिया करिया होगे ।
अपन घर ल पहिचान बाबू सपना ले जाग
देख निटोर के अब तो बिहनिया होगे ।
.............रमेश...............
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
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वा भैय्या रमेश , वा वा !! छतीसगढ़ी मे गज़ल बांच के मन जुडाइस हवे !!! बहुते बने लिके हवौ !! कोरी अकन बधइ लेवौ भई !! हमर भांखा के मान ल घलो बढ़ाये हवौ , एखर सेती अउ बधई !!
ओबीओ मा छत्तीसगढ़ी गज़ल बाँच के सिरतोन मन जुड़ागे. मोरो डहर ले गड़ा-गाड़ा बधई.
कोनो ल सुहावत नईये मोरो भाखा
कइसन मोर लईका मन शहरिया होगे ।
नान्हेंपन ले सिखाना परिही भाई -
अपन देस के रहन सहन अउ भाखा के तुम मान करव
चमक-दमक मा झन मोहावौ, हीरा के पहिचान करव
साबूत बीजा हमर धरोहर, बाकी सब हे ढुरू-ढुरू..............
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