परसिद्धन के दुआरे लोगन क भीड़ जुटल रहे| खटिया मचिया चौकी कुर्सी कुल पर लोग बईठल रहलं| अंगना में मेहरारू आ लईकी गजाइल रहलीं| पईलउठी क लईका होखे की ख़ुशी में परसिद्धन क गोड़ भुईयां ना पड़े| सगरो गाँव नेवत देले रहलं| किरिन ढरकते लोग खाए लगलन| औकात से बढ़िया बेवस्था बुझात रहे| अंगना में मेहरारू लोग निक से निक सोहर गांवे| खईला की बाद मनरंजन खातिर चौकी पर क नाचो रहे|
केहू कहे की लईका के कलट्टर बनईहा त केहू डंगडर (डाक्टर) बनावे के सलाह दे| लेकिन परसिद्धन के मन में बस इहे एगो इच्छा रहे की बबुववा इंजीयर (इंजिनियर) बनी|
धीरे-धीरे समय समय बीते लागल| तीन साल क दिन बीत गईल| उनकर एगो लईकी भी भइल| परसिद्धन इ बात से तनी नाराज भइलन| तबो सोचे की जाये दा परिवार त पूरा भइल| अब घर में चार गो परानी भ गइल रहलं| खेत जमीन भी ठीक ठाक रहे| खाए की बाद बेंचे भर के भी अनाज हो जाय|
विनोद रोज-रोज पढ़े जाय| तिसरका क्लास में आ गइल रहे| पढ़े में भी होशियार रहे| परसिद्धन आपन जिम्मेदारी समझें आ कबो-कबो स्कूले जा के मास्टर लोग से मिलें आ पूछे, " माहटर जी, हमार लईकवा कईसन बा पढ़े में| तनी ओकर धियान राखब |"
एक दिन राज्देई कहलीं, " ए बिंधवा के बाबु जी, काहें न पिरंकवो क नाम लिखा देला | उहो जात पढ़े | तनी उहो पढ़ लेत त आपन नाव गाँव त लिख लेत |"
परसिद्धन कहलन," उ का करी पढ़ के, खनवे न बनावे का बा ओके| काहें न खाना बनावे सिखावेली |"
लेकिन राज्देई के बार कहला पर ओहू क नाम लिखा देवल गइल| दुनो भाई बहिन संगे संगे पढ़े जांय| जईसहीं लईकवा ओईसहिन लईकियो पढ़े में हुशियार रहे|
माघ बीतत रहे| दुनो परानी गेंहू की खेत में से बनगेंहुआ उखारत रहलं| परसिद्धन कहलन," देखबी बिनोद क माई, बबुववा कहत रहे की असों ओकर बारह पूरा हो जाई | हम सोचत हईं की भगवान् की किरिपा से अगर बढ़िया अनाज हो जाई त ओकर नांव इन्जियरी (इंजीनियरिंग) में लिखा देतीं | हमार बड़ा सपना बा की लाल इंजीयर हो जईहन त हमनी क कूल्ह दुःख भाग जाई |"
राज्देई भी हुंकारी भर दीहलीं|
अभिन आलू क सौदा न भइल रहे|
बिनोद के इंजीनियरिंग के पढाई के एक साल पूरा हो गइल रहे| प्रियंका भी दस फर्स्ट क्लास में पास हो गइल| बाबू जी उनकर खातिर लईका जोहे लागलं | प्रियंका भैया से पढ़े में तनिको ओनईस ना रहे| ओहू क खूब पढ़े क मन करे| एक दिन उ माई से सिपारिस कईलीं," ए माई, बाबू जी से कह के हमारो नाम लिखवा दे ना ११ में| हमरो पढ़े क मन करेला |" राज्देई भी सोचे की लईकियो पढ़ ले, फिर सोचे की कहाँ से एतना पईसा आई| बबुववा के पढ़वले में हाथ गोड़ बन्हाईल बा| बेवंत कहाँ बा एके पढावे खातिर| आ एगो बात और रहे की उनका धियान में कवनो लईकी ना रहलीं जवन की १० के आगे पढ़त होखें| अनमनाहे ढंग से कहलीं," ठीक बा तोहार बाबू जी से हम बात करब |"
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bahut badhia kahani bhai
dhnywad guru ji.
jaldiye hm ekar dusarka bhag type k ke bhejab.
बहुत खूब आशीष बाबू , अबही तक के कथा पढ़ी के त हम इहे कहब की कहानी के बाउनडरी बहुते नीमन बन्हले बाड़ा, बहुत खूब |
Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ji ewam Ganesh Jee "Bagi" ji,
aap logan ke kahani k pahilka bhag pasand aail, hmar lekhan kuchh kuchh safal ho gail. aa hm dhanya.
bahute dher dhanywaad.
hamke ummid ba ki dusarko bhag aap logan ke pasand aai|
badhiya kahani ....sughar tarika kahani kaheke abut badhiya badhai bhai .
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