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बात जवन भुलाला ना ( शिक्षक दिवस पर विशेष ) 

जिनगी में कभो कभो अइसन घटना घट जाला जवना के आदमी भुला ना पावे, बात आज से २३ बरिस पहिले के ह वोह घरी हम कक्षा ९ में पढ़त रहनी, हमनी के एगो अंग्रेजी के मास्टर साहब रहले उनुकर नाम आर. पी. श्रीवास्तव रहे | बहुते शानदार व्यक्तित्व रहे उनुकर, हैण्ड राईटिंग अइसन कि सभे लईका ओइसने लिखल चाहत रहन स, हमार अंग्रेजी राईटिंग में उनुकर बहुत परभाव बा | पढ़ावे के तरीका एतना नीमन कि कवनो लईका उनुकर क्लास ना छोड़ल चाहे आ उहों  के कभो नागा ना करस | रोज के तरे ओहू दिने सर क्लास में अइले आउर हमनी के सब जाना खाड़  होके एकेसुर में बोल पड़नी जा "गुड आफ्टर नून सर" उहा के बईठे के इशारा कर के खुदों कुर्सी पर बईठ गईले आ कहले कि "आज बहुत थक गया हूँ, नया चेप्टर नहीं पढ़ाऊंगा, आप सभी स्वयम से पिछले चेप्टर का आंसर लिखें" | मने मन बड़ा खीस बरल, काहे से कि आज नया चेप्टर पढ़े के मन रहे, खीस में हम धीरे से बुदबुदा दिहनी "बड़का थाक गईल बाड़ें, लागत बा ईटा ढो के आइल बाड़ें" | बगल में हमरा एगो मनबढ़ू साथी बईठल रहे उ तपाक से खाड हो के सर से हमार बुद्बुदाइल बात जोर जोर से कह दिहलस | अब त हमार हालत डर के मारे पातर हो गइल, उहा के हमरा के कुछु ना डटनी, पर जवन बात कहनी उ हम ताजीवन ना भुला पाईब | हमरा ओर देख के कहले "ईश्वर करें तुम पढ़ लिखकर कोई अच्छी नौकरी करों तब स्वयम समझ में आ जायेगा कि केवल ईट ढोने से ही आदमी नहीं थका करता है" आजुओ जब हम आफिस से थाकल घर जानी त सर के कहल उ बात कान में गूंजे लागेला | आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम रउआ के बहुत इयाद करत बानी, राउर चरण में हमार कोटि कोटि परनाम बा | 
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Replies to This Discussion

संस्मरण के पोथी से अइसना पन्ना के काढ़ल मन के भेंइ गइल, भाई गणेशजी. सही कहल बा, जवन जिनिगी के लइकाईं में हमनी का सपना अस सोचत रहनीं जा, ऊ जिनिगी के जीये में कातना पेरासन बा, ई अब बुझाता. अपना गुरुजी लोगन के इयाद क के मन स्रधा से नत हो जाला.

एगो बात : भोजपुरी में ’भी’ आ ’ही’ के प्रयोग नत कइल करीं. जतना बाँचल जाव ओतने नीमन.  जवना शब्द के पाछा ’भी’ आवे के होखे ओह शब्द के अंतिम अक्षर में ओ के मात्रा लगा दीहल करीं. जइसे,  उहा के भी’  के उहों के कइल जा सकेला. चाहे वोह दिन भी  के उहो दिने के प्रयोग होला. आदि-आदि..

एह पोस्ट खातिर बधाई.  भोजपुरी मंच के उजियार राखल जाव.

बहुत बहुत आभार भईया, इ घटना बहुत बार सोचनी कि साझा करी, पर कवनो ना कवनो बहाना ना हो पावत रहे, आज हम अपना के ना रोक पवनी, त्रुटी के सुधार कर दिहले बानी एक बार औरो रौआ एह बात के बतवले रहनी, पर फेनु उहे भूल हो गइल रहे, क्षमा चाहेब |

गणेश भाई, हमनी के जवार के भाषा में शिक्षक  शब्द आम जन के बोलाचाली में बुला बहुत्ते (बहुत ही) बाद में आइल. भा, सोझ कहीं त, हिन्दी भाषा के कारने आइल. ना त बेसिको इस्कूल में पढ़ावे आला अमदी गुरुजी कहात रहे. हम लइकाईं में गँउवा के मास्टर साहब के गुरु जी कहीं, आ ऊ मास्टर साहेब के सँहतिया भा समउमरी लोग सोझ मास्टर कहे. माने गुरुजी शब्द हाल ले हमनी के बोली में रहे आ आदरसूचक शब्द रहे.

सही कहनी हां, हमनी के वोह घरी(कक्षा ५ तक) अचार (आचार्य) जी कही जा अउर प्रधानाचार्य जी के बड़े अचार जी, वोकर बाद माट साहेब कहाए लागल लोग तनी अउर बड़ भईनी जा त मास्टर साहब पर ना जाने काहे संस्कृत वाले टीचर जी हर समय गुरुए जी कहासु :-)

सचकीऽऽऽ..  संस्कृत के माहटर साहेब गुरुए जी कहासु. ..  :-)))))

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