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बिना माई के ई संसार ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
बड़ कइनी तोहरा के दुधवा पीयाके ।
छाती से लगा के रखनी दुखवा भुलाके ।
तोहरा मेहरी के आगे अब हमार ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
अब घरवा के कबो सुधियो ना लेल ।
केतना पाती भेजवनी उतरो ना देल।
ना करब हमार मदत त काम ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
देहियाँ थाकल अब काम ना होला ।
देखि बेसहारा मदद करेला सब टोला ।
कहेलन जाके लोग तोहरा पता ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
जब खेत बारी नइखे अनाज कइसे आई ।
बेची बेची खेतवा  करवनी पढ़ाई ।
करेल जब नोकरी तोहसे भार ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
बाबुजी तोहार युग बीतल साथ छोड़लन ।
काम चलल कइके  मजदूरी जब रहलन ।
अब मांग त केहू कहेला उधार ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
 तूहीं बाड़ बबुवा एगो जीवन के  सहारा ।
कहिया ले साथ दिहन हित नात  हमारा ।
वर्मा कर विचार  ना त काम ना चली ।
कइसे कहल बबुआ , तोहरा से भार ना चली ।
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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