पचीस बरिस पहिले राजेश्वर सिंह गाँव छोड़ बम्बई के एगो उद्योगपति के दमाद बनि ओहिजे बस गइले. हाइ-फाइ माहौल में जनमल आ पढ़ल-बढ़ल सिंह साहब के बेटा जिद करे लागल जे ऊ होली गाँवे में मनाई. बबुआ केनियो पढ़ लेले रहे जे गाँव में होली मस्त होला.
एक हप्ता के बाद बबुआ होली मना के वापिस बम्बई चहुँपल आ चहुँपते अपना डैड आ मॉम के गोड़ धइ के परनाम कइलस. हाय-बाय करे वाला लइका प गाँव के रंग आ बसंती बयार के असर साफा लउकत रहे.
(मौलिक व अप्रकाशित)
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बहुत बढ़िया लघुकथा भईल भा आ. Er. Ganesh Jee "Bagi" जी साहिब ,,,आपके धेरकुल बधाई |
लघुकथा सराहे बदे बहुते आभार महर्षि भाई.
बहुते आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, राउर सराहना हमरा खातिर आशीर्वाद बा.
राउर खड़ी बोली लघुकथा जेतना प्रभावी होला ओतना ई कथा ना लगत बा ,तबो भोजपुरी में आप लिखेलीं अउर एकर प्रसार-प्रचार करे लीं ,ये खातिर बधाई |
सोमेश भाई रउआ एह लघुकथा प अईनी आ आपन विचार दिहनी इहो बहुत बा, निक ना लागल उ त ठीक बा बाकिर रौआ त खुदे एगो नीमन साहित्यकार हई, कुछो सुझाव देहती त औरों निक रहित, आभार आपके.
राउर धन्यवाद बा श्वेतांक जी.
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