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आचार्य जी, इ दोहन के जेतना तारीफ़ कईल जाव कम बा, उ कहल जाला नू की देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर, त उ बात बा, सब दोहा बहुत गहिरा अर्थ लेहले बा,
दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.
नहीं पराया आपना, 'सलिल' लगावत आग..
इ दोहा त सन्न से करेजा चिरत बा, एक दम से सही कहनी हा रौआ , आज घरी दोसरा से नईखे डर , अपने से डर बा , कोई कहले बा नू कि घर जर गईल घरही के चिराग से , उहे बात बा |
कुल मिलाके बहुते निक लागल, उम्मीद करब जा कि राउर लेखनी हिंदी के साथ साथ भोजपुरी साहित्य के भी एही तरे समृद्ध करी, बहुत बहुत बधाई एह रचना पर |
जय राम जी की,
///////// बहुत बढियां बाय आप के हमार नमस्कार .....................
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