मुक्तहरा सवैया का विधान आठ जगण की आवृति है. इसके अंतिम यानि आठवें जगण के तीसरे लघु वर्ण को गुरु वर्ण कर दिया जाय तो उक्त जगण यगण (यानि लघु गुरु गुरु) में परिवर्तित हो जाता है. इस तरह शेष रहते हैं सात जगण के अंत मे एक यगण का वृत. इस विन्यास को ही वाम सवैया कहते हैं.
इस तरह वाम सवैया = जगण (लघु गुरु लघु) X 7 + यगण (लघु गुरु गुरु)
यानि, जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) जगण (लघु गुरु लघु) यमाता (लघु गुरु गुरु)
या, वाम सवैया के लिए यह भी कहा जा सकता है कि मत्तगयंद सवैया के आदि में लघु जोड़ देने से इस सवैया का होना माना जाता है.
मत्तगयंद सवैया = भगण (गुरु लघु लघु) X 7 + गुरु गुरु
उपरोक्त सूत्र के अनुसार, मत्तगयंद के विन्यास के आदि में लघु जोड़ दिया जाय = । + (ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। + ऽऽ) तो वाम सवैया का होना माना जाता है.
अतः वाम सवैया के लिहाज से उपरोक्त विन्यास होगा - (।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। + ।ऽऽ)
उदाहरणार्थ छंद -
जु लोक यथा मति वेद पढ़ैं सह आगम औ दश आठ प्रमाने
बनै महि में शुक शारद शेष गणेश हा बुधि मन्त समाने
चढैं गज बाजि सु पीनास आदि जु वाहन राजन केर बखाने
लहैं भलि वाम अरू धन धाम तु काह भयो बिनु रामहिं जाने
इस छंद के पहले पद में वेद, आगम यानि वेदांत और दश आठ प्रमाण यानि अट्ठारह पुराण की चर्चा है. इसीतरह, तीसरे पद में हाथी, घोड़े पीनस राजाओं की सवारियाँ आदि की चर्चा है.
अब प्रथम पद विन्यास -
जु लोक (लघु गुरु लघु) / यथा म (लघु गुरु लघु) / ति वेद (लघु गुरु लघु) / पढ़ैं स (लघु गुरु लघु) / ह आग (लघु गुरु लघु) /
<-------------1----------> <-----------2-------------> <-----------3-----------> <----------4-----------> <------------5------------->
म औ द (लघु गुरु लघु) / श आठ (लघु गुरु लघु) / प्रमाने (लघु गुरु गुरु)
<-------------6----------> <------------7------------> <----------8---------->
उपरोक्त विन्यास पर विशेष चर्चा की आवश्यकता प्रतीत नहीं हो रही.
ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
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