यगणाश्रित (यगण पर आश्रित) सवैयों में महाभुजंगप्रयात या भुजंगप्रयात सवैयों को लिया जा रहा है. जिसमें यगण की आठ आवृतियाँ वृत का निर्माण करती हैं.
अर्थात, महाभुजंगप्रयात सवैया = यगण X 8
या, यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता
यानि, ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
उदाहरण हेतु भिखारीदास रचित एक सवैये के दो पद लेते हैं -
तुहैं देखिबे की महाचाह बाढ़ी मिलापै विचारै सराहै स्मरै जू
रहे बैठि न्यारी घटा देखि कारी बिहारी बिहारी बिहारी ररै जू
प्रथम पद का विन्यास -
तुहैं दे (लघु गुरु गुरु) / खिबे की (लघु गुरु गुरु) / महाचा (लघु गुरु गुरु) / ह बाढ़ी (लघु गुरु गुरु) /
<-----------1----------> <----------2---------------> <--------3--------------> <---------4--------------->
मिलापै (लघु गुरु गुरु) / विचारै (लघु गुरु गुरु) / सराहै (लघु गुरु गुरु) / स्मरै जू (लघु गुरु गुरु)
<-----------5----------> <-----------6------------> <-----------7----------> <-----------8------------>
कहना न होगा, उपरोक्त पद में यमाता (लघु गुरु गुरु) का शुद्ध प्रयोग हआ है.
कुछ विद्वानों द्वारा इस सवैये के लिए भुजंग सवैया संज्ञा का प्रयोग हुआ है.
ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
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