छन्न पैकैंया छन्न पकैंया जाना है बड़ी दूर |
चलते-चलते पांव थक गये, मंजिल है बड़ी दूर ||
छन्न पैकैंया छन्न पकैंया, माँ बैठी चोटी पर |
दर्शन को तरसे है नैना, सांस चढ़ रही ऊपर ||
छन्न पैकैंया छन्न पकैंया, इक-इक पग है भारी |
फिर भी चढती आऊँ मैया, पाऊँ झलक तिहारी ||
छन्न पैकैंया छन्न पकैंया, माँ है कितनी भोली |
जब भी जो भी माँगा मैंने, हर बार भरी झोली ||
( ये रचना ३ तारीख को माँ वैष्णोदेवी की यात्रा के दौरान अर्धकुमारी में लिखी थी )
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
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भक्ति रस में डूब कर लिखी वाह्ह्ह बहुत ही सरस छन्न पकैया,ढेरों बधाई प्रिय मीना जी|
saadar abhaar aadrneeya Rajesh Kumari ji
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