अपना विवाह में बहुत राश संगी साथी के बरियाती जयबाक लेल कहलियनि , एबो केलाह , मुदा एकटा मित्र कहलाह जे जायब त लेकिन दारू पिबे टा करब । हम कहलियनि जे आहा पिबे करब आ पिब क' ताण्डव करबे करब, त' कहलाह जे इहो भ' सकैत अछि । हम कहलियनि जे आहाँ नै जाऊ, कारन आहां हमर प्रतिष्ठा आ अप्पन गामक प्रतिष्ठा दुनु के ख़राब करब, तैं नै जाऊ, कहलाह ठीक छैक । संगही जतेक मित्र लोकनि छलाह सब गोटा के सूचित क' देलियनि जे कोनो तरहक एहन काज कियो गोटा नै करब जाही स हमरा संग संग हमर गामक प्रतिष्ठा पर आँच आबय, आ यदि मोन में बिपरीत भावना होबय त' नहि जाऊ इ कष्ट हम बर्दास्त क' लेब । एकटा मित्र कहलाह जे कनि - मनि मजाक अगर भ' जेतेई त की हेतै ? हम कलियनी जे जिनका ओहिठाम आहाँ जाई छी , ओ हमर सम्बन्धी होबै जा रहल छथि । त' आहाँ ओहिठाम अगर कोनो अनुचित व्यवहार करब तकर माने आंहाँ हमरा संगे अनुचित व्यवहार करब । कहु की ई बर्दास्त करबा योग्य होयत ? जहिना अहाँ स हमरा स्नेहवत सम्बन्ध अछि तहिना ओतौ स रखबाक में आंहाँ सब सँ सहयोगक अपेछा राखैत छी । सब गोटे सहमत भेलाह आ बड्ड प्रतिष्ठा अर्जन क बरियाती सँ वापिस अयलाह ।
कारन हमरा ई बात के बड्ड कष्ट अछि जे हमर विवाह में देश - विदेश सँ संगी - साथी आबथि, मुदा जाहि लड़की के विवाह होई तकर मित्र देश - विदेश सँ त' काsत जाऊ अड़ोस - परोश तथा सगा - सम्बन्धी के सेहओ एनाई उचित नहि बुझैछथिन । सबहक पिताजी, भाईजी सब कहै छथिन नै जाऊ आब बरियाती सभ्य नहि अबैत अछि । की हमरा सब अपने टा मनोरथ बुझै छी ? ओ बेटी आ बहिनक मनोरथ के बारे में सेहो सोचु जे विवाहोपरान्त अप्पन माय - बाप संगी - सहेली के छोड़ि कतेक दूर भ' जाइत छथि ।
"मौलिक आ अप्रकाशित"
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आदरणीया कांता जी सादर नमन , अपनेक प्रतिक्रिया देखि मोन हर्षित भेल। हाँ , हमरा सँ इ लिखबा में गलती भेल जे लघुकथा थिक , वास्तविक में इ से छी नै , जकरा अपने प्रत्यक्ष रुप सँ कहलहुँ मोन में बेसी ख़ुशी भेल। आई - काल्हि सत्यो बजनाए लोक जे छोड़ि देने छैक। तथापि अपनेक प्रतिक्रिया हमरा बड्ड निक लागल आशा नहीं अपितु पूर्ण विस्श्वास अछि अपने स्नेह बना सदिखन उचित , अनुचितक मार्ग दर्शन करबैत रहब। स्नेहाकांक्षी सतत। संजय झा "नागदह"
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