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प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी (बाबा के गीत )प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाबा यौ नाम अहाँ के रटते -रटते ,करबै जीवन अंत यौ....... प्रसाद बुझी हम पीबी रहल छी ई जीवन दुःख बाब… Started by kanta roy |
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Sep 20, 2016 Reply by जगदानन्द झा 'मनु' |
जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि (लघुकथा)एक दिन दू आदमी के झगड़ा होइत रहैक , जकर गलती रहइ से ओहि ठाम उपस्थित लोक के बेर - बेर दोसर के इंगित कs कहय जे एकर बात पर हमरा देह में आगि लाग… Started by SANJAY KUMAR JHA |
0 | Aug 23, 2015 |
अथ फिनायल कथा !दुःख हरो द्वारका नाथ शरण मैं तेरी ……. ! मोबाइलक घण्टी बाजल ! स्क्रीन पर चमकै छल “ कनियाँ के फोन ” ! इग्नोरक त प्रश्ने नहि !! धरफरा क फोन उ… Started by SANJAY KUMAR JHA |
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Aug 23, 2015 Reply by SANJAY KUMAR JHA |
बेटी आ बहिनक मनोरथ के बारे में सेहो सोचु (लघुकथा)अपना विवाह में बहुत राश संगी साथी के बरियाती जयबाक लेल कहलियनि , एबो केलाह , मुदा एकटा मित्र कहलाह जे जायब त लेकिन दारू पिबे टा करब । हम कह… Started by SANJAY KUMAR JHA |
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Aug 11, 2015 Reply by kanta roy |
चरिपतिया(१)चाहे आहाँ रहु दिल्ली आ मुम्बई,वा रहु देश-विदेशक कोनो कोण में,मैथिल भेटिते मैथिली बाजू टन द' मिठगर बोल में । … Started by SANJAY KUMAR JHA |
0 | Aug 11, 2015 |
सीता माता वन्दनातर्ज़ : जय जय भैरवि अशुर भयाऊनि जय जय सीता मिथिला तारिणी जनक धिया सुखदाईसुन्दर सुमति दिय हे मातादुःख निवारू माईजय जय सीता मिथिला तारिणी ।… Started by SANJAY KUMAR JHA |
0 | Aug 10, 2015 |
गीतई जे साँझ परलै मैया की हमरे जीवनमे मुनल आँखि तकबै कहिया हमरो जीवनमे।। सगर दुनियाँकेँ चिलका माएक आँचर तर हम अभागल कोना भटकै छी दर-दर।। घुर… Started by जगदानन्द झा 'मनु' |
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Aug 10, 2015 Reply by kanta roy |
सम्हरि जाऊ बाबू मिथिलानी जागि गेल ( लघुकथा )" यौ गाम बाबू ,सुनलियै , कि कहैत छथिन पिसी दाई । " " कि कहैत छथुन मंजूला बौआ , तोहर पिसी दाई ? " " कहै छथिन जे कतबो पढेबै बेटी के , पाई… Started by kanta roy |
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Aug 10, 2015 Reply by kanta roy |
की आहो रामा.....की आहो रामा..... कल जोरी करै छि हे मैया.. विनती हमरो सुनियौ .. की आहो रामा... मिथिला के दियौ एअहन सपूत हे जननी..२ मोन में ने छल होई ओकरा.… Started by pankaj jha |
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Jul 7, 2015 Reply by kanta roy |
रुबाइअपन बाँहि में अहाँ के गछारि लेब हम नजरि सँ करेज में उतारि लेब हम एक बेर हँ तँ कहि कए देखिऔ सगरो बाट पर आँचर पसारि देब हम Started by ASHISH ANCHINHAR |
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Jul 7, 2015 Reply by kanta roy |
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