प्रतियोगिता परिणाम: "चित्र से काव्य तक" अंक-१६
नमस्कार साथियों,
"चित्र से काव्य तक" अंक -१६ प्रतियोगिता का निर्णय आपके समक्ष प्रस्तुत करने का समय आ गया है | हमेशा की तरह इस बार भी निर्णय जैसे कठिन कार्य को हमारे निर्णायक-मंडल नें अत्यंत परिश्रम से संपन्न किया है |
दोस्तों ! लगातार तीन दिनों तक चली इस सावनी प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रस्तुत चित्र के मोहपाश में बंधकर हमारे समस्त प्रतिभागी सावनी मस्ती में ऐसे डूबे कि सारा माहौल ही छंदमय हो गया | इसमें आयी हुई ६८८ रिप्लाईज के माध्यम से हमारे छन्द्कारों ने इस चित्र को विभिन्न छंदों के माध्यम से स्वरूचि अनुसार विभिन्न विधाओं में चित्रित कर दिखाया जिस हेतु सभी ओ बी ओ सदस्य बधाई के पात्र हैं| इस बार की प्रतियोगिता का शुभारम्भ सुप्रसिद्ध जनकवि श्री आलोक सीतापुरी जी के शानदार मदिरा सवैया से हुआ जिसमें प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आ गयी......... तद्पश्चात अविनाश एस० बागडे जी के सार छंदों (छन्न-पकैया) ने जमकर धूम मचाई उनके द्वारा रचे गए दोनों रोले भी कुछ कम नहीं रहे ....उसके बाद तो हास्यसम्राट अलबेला खत्री जी के मस्त-मस्त दोहों ने कुछ ऐसा कमाल किया कि यह आयोजन प्रतिक्रिया दोहों से मालामाल हो गया | इस प्रतियोगिता के अंतर्गत अधिकतर सवैया, सार छंद (छन्न पकैया) , रूपमाला, दोहा, कुंडलिया , मत्तगयन्द सवैया, दुर्मिल सवैया , मालिनी, पञ्चचामर आदि विधाओं में शानदार छंद प्रस्तुत किये गये | इस प्रतियोगिता में समस्त प्रतिभागियों के मध्य, आदरणीय योगराज प्रभाकर , सौरभ पाण्डेय, संजय मिश्र ‘हबीब’, अलबेला खत्री, उमाशंकर मिश्र, अरुण कुमार निगम, प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा, अविनाश एस बागडे, दिनेश रविकर ,आदरेया राजेश कुमारी, सीमा अग्रवाल व संदीप कुमार पाटिल आदि ने अंत तक अपनी बेहतरीन टिप्पणियों के माध्यम से सभी प्रतिभागियों व संचालकों के मध्य परस्पर संवाद कायम रखा तथा तथा प्रतिक्रियाओं में छंदों का खुलकर प्रयोग करके इस प्रतियोगिता को और भी रुचिकर व आकर्षक बना दिया | ओ बो प्रबंधन व कार्यकारिणी सदस्यों ने भी प्रतियोगिता से बाहर रहकर मात्र उत्साहवर्धन के उद्देश्य से ही अपनी-अपनी स्तरीय रचनाएँ पोस्ट कीं जो कि सभी प्रतिभागियों को चित्र की परिधि के अंतर्गत ही अनुशासित सृजन की ओर प्रेरित करती रहीं, साथ-साथ अन्य साथियों की रचनायों की खुले दिल से निष्पक्ष समीक्षा व प्रशंसा भी की गयी जो कि इस प्रतियोगिता की गति को त्वरित करती रही |
‘प्रतियोगिता से बाहर’ श्रेणी में आदरणीय आलोक सीतापुरी, योगराज प्रभाकर , श्री संजय मिश्र हबीबजी, श्रीमती सीमा अग्रवाल जी व उमाशंकर मिश्र आदि की रचनाएँ उत्कृष्ट कोटि की रहीं जिन्हें ओ बी ओ सदस्यों से भरपूर सराहना प्राप्त हुई | आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, के साथ अलबेला खत्री की काव्यात्मक टिप्पणियों ने प्रतियोगिता के उत्साह को न केवल दुगुना किया बल्कि सदस्यों का मार्ग भी प्रशस्त किया.
प्रसन्नता की बात यह भी है कि यह प्रतियोगिता छंदबद्ध होकर अपेक्षित गुणवत्ता की ओर अग्रसर हो रही है........... संभवतः वह दिन दूर नहीं..... जब ओ बी ओ पर मनचाही विधा में मनभावन छंदों की चहुँ ओर बरसात होगी |
इस यज्ञ में काव्य-रूपी आहुतियाँ डालने के लिए समस्त ओ बी ओ मित्रों का हार्दिक आभार...
प्रतियोगिता का निर्णय कुछ इस प्रकार से है...
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प्रथम पुरस्कार रूपये १००१/- व प्रमाण पत्र
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
इस बार प्रथम स्थान : पर डॉ० प्राची सिंह की कुंडलिया प्रतिष्ठित हुई है |
(१)
सावन झूमे सोहनी, मस्ती में महिवाल,
झूले की पींगें चढीं , ओढ़ चुनरिया लाल
ओढ़ चुनरिया लाल, पहिन घाघर जयपुरिया,
झांझर, कंगन, हार, जुत्ती है अमृतसरिया,
भिजवाया शृंगार, बहुत रसिया हैं साजन,
रंग ले गयीं साथ, कहें मुझसे इस सावन..
-- डॉ० प्राची सिंह
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द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१/- व प्रमाण पत्र
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
द्वितीय स्थान ; पर श्री अरुण कुमार निगम जी का मत्तगयंद सवैया विराजमान हैं |
सावन पावन है मन भावन आय हिया हिचकोलत झूलै
बाँटत बुँदनिया बदरी बदरा रसिया रस घोरत झूलै
झाँझर झाँझ बजै झनकैय झमकैय झुमके झकझोरत झूलै
ए सखि आवत लाज मुझे सजना उत् भाव विभोरत झूलै
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(अरुण कुमार निगम जी के अनुरोध के अनुसार संशोधित सवैया)
सावन पावन है मन भावन, हाय हिया हिचकोलत झूलै
बाँटत बूँदनियाँ बदरी, बदरा रसिया रस घोरत झूलै
झाँझर झाँझ बजै झनकै, झमकै झुमके झकझोरत झूलै
ए सखि आवत लाज मुझे, सजना उत् भाव विभोरत झूलै
-- अरुण निगम
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तृतीय पुरस्कार रुपये २५१/- व प्रमाण पत्र
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala
A leading publishing House
तृतीय स्थान : श्री दिनेश रविकर के कुंडलिया को जाता है |
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कुंडलिया
रंग-बिरंगे पट पहर, दूर शहर की हूर |
किये साज-सज्जा सकल, महज तीन लंगूर |
महज तीन लंगूर, पहर दो झट पट बीता |
झूल चुकी भरपूर, नहीं आया मनमीता |
ये सावन की घास, लगा के रखी अड़ंगे |
हरा हरा चहुँ ओर, दिखें न रंग-बिरंगे ||
-- दिनेश रविकर
प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान के उपरोक्त सभी विजेताओं को सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से हार्दिक बधाई व साधुवाद...
उपरोक्त प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान के विजेताओं की रचनाएँ आगामी "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१७ के लिए प्रतियोगिता से स्वतः ही बाहर होंगी | ‘चित्र से काव्य तक’ प्रतियोगिता अंक-१८ में वे पुनः भाग ले सकेंगे !
जय ओ बी ओ!
अम्बरीष श्रीवास्तव
अध्यक्ष,
"चित्र से काव्य तक" समूह
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नमस्कार आदरणीय अरुण जी ! प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त कने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ! आपकी इच्छानुसार संशोधन कर दिया गया है !
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