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...शादी को टूटने से बचाएं!

 

...शादी सदियों से चलता आ रहा एक सामाजिक बंधन है!...इस के अंतर्गत पति-पत्नी की आपस की जिम्मेदारियां बराबर की ही हो जाती है!....पत्नी, पति को आगे तरक्की करने में मदद करती है!... और भी पति, पत्नी को प्रगति के पथ पर आगे बढने में मदद करता है!...एक दूसरे की पसंद और नापसंद समझ कर निर्णय लेना,  एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना, आर्थिक मामलों में एक दूसरे की राय ले कर कार्य का आयोजन करना,धनोपार्जन पति करता है या पत्नी करती है ..या दोनों करते है!...उस धन पर पति और पत्नी का समान अधिकार होना ...ये सब कुछ शादी के लिए बनाए गए सामान्य नियमों के अंतर्गत आता है!...

 

...लेकिन देखा गया है कि इसके बावजूद भी कुछ परिवारों में ऐसा कुछ घटित हो जाता है कि संबंध-विच्छेद ( डिवोर्स ) की नौबत आ जाती है!शादियाँ टूटती है!...कुछ परिवारों में पति-पत्नी के संबंध तनाव पूर्ण रहते हुए भी स्त्रिओं की तरफ से यथा संभव समझौता बना कर रखा जाता है और शादी टूटती नहीं है किन्तु  अखंड रहती है!

 

......क्या विवाह के बंधन को बना कर रखने की जिम्मेदारी सिर्फ एक स्त्री की ही होती है?...बच्चों की भलाई के लिए या समाज में सिर उठाकर इज्जत से रहने के लिए शादी को बर-करार रखने की मानसिकता सिर्फ स्त्री के ही जिम्मे रहती है?...अपवाद जरुर ऐसे भी होंगे जिसमें यह सब पुरुषों द्वारा सोच कर वैवाहिक बंधन को अखंड रखा गया हो!...लेकिन आसपास नजर दौडाने पर पता चलता है कि जो शादियाँ अखंड है, वहाँ स्त्रिओं की तरफ से किए गए प्रयास ही अहम भूमिका निभाते है!...इसके लिए स्त्रिओं को ही मानसिक, आर्थिक या शारीरिक यातनाएं झेलनी पड़ती है!....क्या पुरुष वर्ग स्त्रिओं की इस परिस्थिती को समझ सकेगा?..क्या टूटती हुई शादियों को बचाने की कोशिश पुरुषों की तरफ से भी होगी?

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