लबरहिया के बात का, बकरी वाली फोंsह
सगर चरित्तर नासि के, छछनो कढ़ली घोंsह
कुकुर जमाती राति-दिन, भूँक बतासे भूँक
भइल असामी मोट, भा, भालू मरलस फूँक !
चढ़ल कपारे आजु जे, काल्हु उहे मुकुराह
चsढ़ल सूरुज देखि लs, आसिन में निखुराह
दिन-दुपहर के नरमई, राति कउड़ के बाँव
गमे-गमे लागल चले, गरम साँस अब दाँव
जामल धूआँ खेत में, दूर चलल बंदूक !
जीउ जाँत चुप रहु परल, भलहीं मनवाँ हूक
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सौरभ
(मौलिक आ अप्रकाशित)
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