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नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
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नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष's Blog

गृहस्थ

छंद-आल्हा/वीर, बृज मिश्रित

-------------------------

जय जय जय भगवती भवानी

कृपा कलम पर रखियो मात

आज पुनः लिख्यौ है आल्हा

जामै चाहूँ तेरौ साथ
महावीर बजरंगी बाला

इष्टदेव मन ध्यान लगाय

निज विचार गृहस्थ पर मेरे

आल्हा में भर रह्यो सुनाय
नर नारी दोनों ही साधक

सर्जन पालन जिनकौ काम

एकम एक बनौ मिल गृहस्थ

कठिन साधना बारौ नाम
बात कहूँ गृहस्थ की पहली

रखो बंधुवर जाकौ ध्यान

नहीं बुराई करौ नारि की

जातै जुडौ…
Continue

Posted on November 18, 2018 at 5:00pm — 2 Comments

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