इन ख़यालों के रंगों को ख्वाबों के इतर देखता कौन है
जब मिल रही है मुफ्त में खुराक तो फेरता कौन है
तितली के रंग हों या हो किसी दीवार पर चिलमन
बिना फायदे के इनसे अपनी आँखों को सेंकता कौन है
जब चढ़ रहा था रंग फूलों की फुलवारी पर
इठला रही थी माँ अपने बच्चे की किलकारी पर
ठीक उसी समय बरसनें लगती हैं सावन की बूदें
वरना पानी का इतना सरल सुंदर रूप देखता कौन है
ये नदियाँ जब गाती हैं कल-कल की धुन
पत्तों की सरसराहट से बढ़ जाती है कई गुन
प्रकृति ही…
Posted on March 14, 2014 at 8:10pm
मेरी खुशी के संग खुल के खिलखिला जाना तेरा
ज़िंदगी मेरी नक्काशी तेरी और नज़राना तेरा
हो गई जो गलतियाँ या की कभी बदमाशियाँ
धीरे से चपत संग प्यार से समझाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर
चाँदनी के रंग सी याद है फितरत तेरी
देखते ही मुस्कुराना शायद थी आदत तेरी
शख्शियत सीने में रख कर याद फरमाता हूँ तुझे
प्लेट टूटी मुझसे थी पर भरना हरजाना तेरा
अब तू ही बता कैसे जियूं तेरे बगैर तेरे बगैर
हाजिरी तेरी सलामत अब भी है दराज़ में…
Posted on March 14, 2014 at 8:06pm — 6 Comments
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