इन ख़यालों के रंगों को ख्वाबों के इतर देखता कौन है
जब मिल रही है मुफ्त में खुराक तो फेरता कौन है
तितली के रंग हों या हो किसी दीवार पर चिलमन
बिना फायदे के इनसे अपनी आँखों को सेंकता कौन है
जब चढ़ रहा था रंग फूलों की फुलवारी पर
इठला रही थी माँ अपने बच्चे की किलकारी पर
ठीक उसी समय बरसनें लगती हैं सावन की बूदें
वरना पानी का इतना सरल सुंदर रूप देखता कौन है
ये नदियाँ जब गाती हैं कल-कल की धुन
पत्तों की सरसराहट से बढ़ जाती है कई गुन
प्रकृति ही है जिसके रंगों से खेलेते हैं सभी
वरना बिना टेडी-बीयर के आज कल खेलता कौन है
वो सारे ऐब की खातिर दवाएं अब निगलते हैं
तरक्की देख कर दूजी मोम जैसे पिघलते हैं
किसी की तो मेहर है हम नाचीजों पर ‘युवा हिन्द’
वरना इस रेत से काला-कृतियाँ उकेरता कौन है
इन ख़यालों के रंगों को ख्वाबों के इतर देखता कौन है
जब मिल रही है मुफ्त में खुराक तो फेरता कौन है
मौलिक व अप्रकाशित
राणा रुद्र प्रताप सिंह 'युवा हिंद'
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