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DINESH KUMAR VISHWAKARMA
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DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। इतनी बारीकी से इस्लाह हेतु आपका बहुत बहुत आभार। आपका सुझाव उचित है। तीसरे शे'र में सूरज के स्थान पर मंगल उचित है। दूसरे शे'र में सुधार करूँगा। "
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आदरणीय कबीर जी आपको सादर प्रणाम। ग़ज़ल तक आकर प्रतिक्रिया देने व महत्वपूर्ण समय देने हेतु आपका आभार आदरणीय।"
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आदरणीय Nilesh ji सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। 4th शे'र अच्छा लगा।  गुणीजनों के माध्यम से इस्लाह पर हमें भी सीखने को मिला। ग़ज़ल हेतु बधाई।"
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"सम्माननीय shukla ji सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार।"
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार। दूसरा शे'र अच्छा लगा। ग़ज़ल के प्रयास हेतु बधाई"
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"212 212 212 212 जान तक कर गया है निसार आदमीइक सुकूँ के लिए बे-क़रार आदमी मिट्टी का एक पैकर सँभाले हुएआँसुओं पे न कर इख़्तियार आदमी चाँद सूरज हैं ज़द में मगर इक तरफ़अब भी राशन की है इक क़तार आदमी आदमी से बड़ा कुछ नहीं है मगरसह रहा वक़्त की अब भी मार…"
Mar 28
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"जी आदरणीय बहुत अच्छी इस्लाह है। बहुत बहुत शुक्रियः"
Feb 25
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। आपके महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु हृदयतल से आभार आदरणीय।"
Feb 25
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय धामी जी। सादर नमस्कार । ग़ज़ल के प्रयास हेतु बधाई।"
Feb 25
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको फेसबुक वाला नया शब्द देखने को मिला।"
Feb 25
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"2122 1122 1122 22/112 तीरगी को न कोई हक़ ही जताने देनाइन चराग़ों को हुनर अपना दिखाने देना ख़ुद से शिकवा है मगर मेरी तो आदत है यहीछोड़ के जाना कोई चाहे तो जाने देना मैं बिखर जाने को बेताब बहुत हूँ यारो'इन हवाओं को मेरी ख़ाक उड़ाने देना' सच की…"
Feb 25
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय धामी जी।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। गिरह में एक नए नजरिये से बात रखी आपने। ग़ज़ल हेतु बधाई।"
Jan 24
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय Euphonic Amit जी सादर नमस्कार। इतनी बारीकियों से इंगित कराने हेतु आपका आभार। सचमुच बहुत सीखने को मिलता है आपसे। आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय।"
Jan 24
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"सम्माननीय शुक्ला जी। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ। जी आपने त्रुटि पर ध्यान दिलाया, उचित है, बहुत बहुत शुक्रियः"
Jan 24
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"2122 1122 1122 22/112 जहाँ इंसाफ़ भी बिकता हो वहाँ क्या देखूँबेबसी है मैं ग़रीबी का तमाशा देखूँ चैन ख़ुद को मिले हरदम यही चाहत है मगरज़िंदगी के लिए मैं ख़ुद को उलझता देखूँ कितने वीरान पड़े हैं वो इमारत क्योंकरमैं किताबों में बहुत जिनका ही चर्चा…"
Jan 24
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय सादर नमस्कार।ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार।"
Oct 26, 2024

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kondagaon
Native Place
kondagaon
Profession
teacher
About me
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ग़ज़ल

ग़ज़ल

1222/1222/1222/1222

वही जज़्बा वही लहजा लिए अख़बार आता है

मगर उस हादसे से क्यूँ परे अख़बार आता है ।

चुनावी दौर के वादे मुकम्मल हो न हो लेकिन

तुम्हे भी हो ख़बर घर पर मेरे अख़बार आता है ।

जो भर्तियाँ अटकी हैं उनका क्या हुआ होगा

अभी तो कोर्ट से लड़ते हुए अख़बार आता है ।

यकीनन सच को ही तो सामने आना जरूरी था

अगरचे झूठ के नीचे दबे अख़बार आता है ।

जो उनके पैरहन का रंग भी चर्चा में आ जाए

यहाँ मातम…

Continue

Posted on March 1, 2022 at 6:00pm

 
 
 

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ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
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