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शीर्षक : नमन वीरों को
हृदय शूल को और बढ़ाकर,
कैसे शमन कर पाउँगा!
अपने ही प्रत्यक्ष खड़े हैं तो,
कैसे दमन कर पाउँगा!
द्वेष राग से दूर खड़ा मैं,
अनथक सतत निभाऊंगा!
फूटेगा जब अन्तस से फिर,
सबका हवन कर जाउंगा!!
माटी की सौगंध मुझे है,
पग ना कभी हटाऊंगा!
प्रलय गिरे हिमसागर से तो,
आरुणि सा अड़ जाउंगा!
जान की बाजी खेलकर भी,
देश की आन बचाऊंगा!
पैटन भी डर जाएगा जब मैं,
हमीद सा टकराऊँगा!
समझ देश का रक्षक मुझको,
दुश्मन मार गिराऊंगा।
नहीं रहूंगा कहीं दुबक के,
भाला बन टकराऊंगा।।
भूख-प्यास सब सहकर भी मैं,
पग ना कभी हटाउंगा।
गर सीमा पर आये अकबर,
मैं राणा बन जाऊँगा।1।
#गिरीश
#भिलाई_3
१६.०९.२०१९
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