चंदा से गपियाने के दिन
कहाँ कठिन थे
’राजनीति’ को छोड़ो
कैसे अच्छे दिन थे।
टीलों पर,
रथ ले अपना
भाग निकलते थे,
अब विमान में डर है
नौ ग्यारह फिर आये;
घसीटते जीवन को,
बोर हुई यात्रायें,
जेटलेग के मारे
नींद रुष्ट हो जाये;
इंटरनेट बिना भी
न थी झंझट कहीं भी
सभी खुले में होते
जश्न, कहाँ केबिन…
ContinuePosted on September 21, 2018 at 1:30pm — 8 Comments
I need to have a word privately,Could you please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com)Thanks.
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