जब भी देखता था रात को जमी से चाँद को
यही सोंचता था,कि
अगर चाँद इतनी दूर से इतना खूबसूरत, इतना चमकदार नजर आता है
तो पास जाकर क्या नजारा होगा ?
यही सोंचकर एक दिन चाँद पर जा पहुंचा
पर वहां ना वो खूबसूरती नजर आई ना वो चमक
कुछ नजर आया तो बस चाँद के गाल में गड्ढे
और चाँद जला जला सा.......
तब समझ आया कि ,
मै चाँद कि जिस चमक को चाँद की खूबसूरती समझता था
वो उसकी चमक नहीं थी
कमबख्त जलाता था खुद को रातों …
Posted on July 16, 2013 at 5:00pm — 1 Comment
फट रहा बादल कही
तो कहीं उठ रहा तूफ़ान है,
इतिहास में दर्ज होने को
बढ़ रहा इन्सान है..
था खुदा का घर वहां
बरसा था कहर जहाँ,
लग रहा खुदा भी नया
कोई गढ़ रहा जहान है..
हो रहा हिसाब अब
कुदरत दे रही जवाब अब,
तूने जो किये अब तक
कुदरत से सवाल थे..
जो सोंच खुश "मैं बच गया"
उसे 'पवन बड्डन' का पैगाम है,
करना है तो प्राश्चित कर
तेरे सर भी आसमान…
ContinuePosted on July 10, 2013 at 4:49pm — 3 Comments
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