ग़ज़ल
तुम चाँद हो फलक पर, या तारों की बहार कह दुँ ,
तुम्हे फूलों की कहूँ रानी ,या गुलबहार कह दूँ ,
देखकर के तुमको शर्मा जाये ,ये गुलशन
तुम मलका ऐ गुल बोलूं या नौबहार कह दूँ ,
तुम चाँद पर भी होती तो फ़ौरन मैं चला आता,
तुमसे मिलने को है कितना, दिल, बेक़रार कह दूँ ,
मिलती नहीं है फुर्सत मुझे तुमको सोचने से
इसे आदत बताऊ अपनी ,या कारोबार कह दूँ,
आते हैं ख्वाब तेरे ,अब तो नींद की जगह
कितना हैं मुझको "सैफी" तुमसे प्यार कह दूँ।
शफ़ीक़ सैफी…
ContinuePosted on July 17, 2017 at 6:24pm — 3 Comments
अब तो मिजाज ऐ यार में वो घुल गए होगी,
मुझको क्या मेरी मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
चमक रही होंगी ,खुशी से पेशानियाँ ,
ख़त्म हो गयी होंगी, सारी परेशानियाँ ,
अब तो गर्द ऐ फिक्र दामन से धुल गयी होगी,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
उसकी गालियों में खुशबु, अब भी आती होगी
मेरी जगह अब वो उसको सुनाती होगी ,
रक़ीब के साथ भी ऐसा ही खुल गयी होगी ,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी.
.
शफ़ीक़ सैफी
मौलिक एबं अप्रकाशित
Posted on July 15, 2017 at 1:00pm — 4 Comments
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