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मुझको क्या मेरी मेरी याद को भी भूल गयी होगी

अब तो मिजाज ऐ यार में वो घुल गए होगी,

मुझको क्या मेरी मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
चमक रही होंगी ,खुशी से पेशानियाँ  ,
ख़त्म हो गयी होंगी, सारी परेशानियाँ  ,
अब तो गर्द ऐ फिक्र दामन से धुल गयी होगी,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी,
उसकी गालियों में खुशबु, अब भी आती होगी
मेरी जगह अब वो उसको सुनाती होगी ,
रक़ीब के साथ भी ऐसा ही खुल गयी होगी ,
मुझको क्या मेरी याद को भी भूल गयी होगी.

.

शफ़ीक़ सैफी
मौलिक एबं अप्रकाशित

Views: 541

Comment

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Comment by Mahendra Kumar on July 20, 2017 at 9:50pm

आ. शफ़ीक़ सैफ़ी जी, इस प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें और गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें. सादर.

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 4:14pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय SHAFIQE SAIFI  जी ,बाकी गुणीजनों की सलाह का संज्ञान लें ! सादर 

Comment by Samar kabeer on July 16, 2017 at 3:46pm
जनाब शफ़ीक़ सैफ़ी साहिब आदाब,अभी आपको बहुत अभ्यास की ज़रूरत है,मंच पर हर विधा के बारे में आलेख मौजूद हैं,उनका अध्यन करें,इस प्रस्तुति के लिए बधाई ।
Comment by Mohammed Arif on July 15, 2017 at 6:50pm
आदरणीय शफ़ीक़ सैफी जी आदाब, पहली बार मैं आपसे ओबीओ के मंच पर आपकी रचना पढ़ रहा हूँ । आपने रचना विधान नहीं लिखा है । आपकी यह रचना किस विधा के अंतर्गत आती है पता नहीं चल रहा है । वैसे आप में काफ़ी संभावना है उभरने की । गुणीजनों से राय लें । प्रयास के लिए बधाई ।

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