मुस्कुराते हो बहुत पछताओगे
बज़्म से तुम भी निकाले जाओगे
तुम विसाले यार को बेताब हो
उस से मिल कर भी बहुत पछताओगे
साथ तेरा मिलगया मगरूर हूँ
तुम भला क्यों गीत मेरे गाओगे
रूह को माँ बाप की तस्लीम कर
साथ अपने सब उजाले पाओगे
भूख से बच्चा बिलखता हो अगर
किस तरहा से रोटियां खा पाओगे
बात सच्ची कह रहे हो तुम मनु
इस जुबा पर तुम भी छाले पाओगे
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार मनु
Posted on February 1, 2015 at 8:00am — 7 Comments
माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
वो घुटनों पे चलना
वो आँखों को मलना
वो मिटटी को खाना
बिना सुर के गाना
वो चिल्ला के कहना
मुझे रोटी देना
आज फिर चूल्हे पे पानी
तूँ पकाती क्यों नहीं
माँ तूँ सुनती क्यूँ नहीं
वो तेरी हथेली
में कितनी पहेली
वो मेरा कसकना
वो तेरा सिसकना
वो ममता की छाया
मुझे याद आया
वो मुस्कान तेरी
वो पेशानी मेरी
आज फिर से बोशा
सजाती क्यूँ नहीं
माँ…
Posted on January 30, 2015 at 7:30pm — 12 Comments
हाथ से यूँ सरसराती सी निकाली जिंदगी
खूब कोशिश की मगर कैसे संभाली जिंदगी
लाख पटके पांव फिर भी जो लिखा था वो हुआ
हर तजुर्बे कर के देखे और खंगाली जिंदगी
जिंदगी की राह में चलते हुए ऐसा लगा
है मरासिम कुछ पुराना देखी भाली जिंदगी
है बड़ी बेबाक सी उज्जड गवारों सी लगी
अब मुझे कितना कचोटे एक गाली जिंदगी
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार मनु
Posted on January 28, 2015 at 9:30am — 11 Comments
Posted on January 26, 2015 at 10:53pm — 12 Comments
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ये मेरी जीस्त हरेक गाम लरज जाती है
तू खफा है तो हुआ कर या रब
सामने मेरे फकत माँ ही काम आती है
ये हुस्न ये शबाब ये नामो शौकत
तूँ बता बाद में मरने के किधर जाती है
मेरी किस्मत है जैसे आंधियो में रेत के घर
जब चमकती है सरे राह बिखर जाती है
यूँ हुआ बेवफा मुझी से जहाँ
याद करता हूँ वफ़ा आँख बरस जाती है
अब मेरा दिल है मेरी जां है और बस मैं हूँ
उसको देखूं कभी ये रूह तरस जाती है
अब तो घर चल बहुत ही रात हुई अब तो मनुु
दूर होता हूँ तभी घर की भी याद आती है
मौलिक एवम अप्रकाशित
विजय कुमार "मनु"
सो मई आँखे बंद किये बैठा रहता हूँ रातों में
मेरी बातें सुन कर के अंदाज बदल ही जाये ना
सो मैं हँस कर टाल रहा अंदाज बदलकर बातों में
जब भी मिलना दूरी रखना सारी दुनियादारी से
शहर का हर इक शख्श मिलेगा लेकर खंजर हाथो में
एक सी धड़कन तेरे दिल में एक जवाँ दिल मुझमे भी
आ कर ले कुछ प्यार की बातें क्या रक्खा है घातों में