मर्ज़ अपने हैं सभी कोई न बेगाना
मेरे घर का एक कोना है दवाखाना
इक नशा सा है मगर साकी न पैमाना
ज़ख़्म अपने पास हैं और दूर मैखाना
किस बीमारी का पता क्या है, वतन क्या है
पूछना कुछ हो तो मेरे घर पे आ जाना
आह भी है, ऊह भी है, शाम है ग़मगीन
शम्अ जलती दर्द की, मैं मस्त परवाना
कोई काँटा, कोई पत्थर, कोई ख़ंजर है
दर्ददाताओं से ही अपना है याराना
इक ग़ज़ल आयी ठिठुरती, कह गयी मुझसे
जम न जाना, जनवरी में ठंड है, माना ।…
Added by Krishnasingh Pela on January 20, 2015 at 10:30am — 19 Comments
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