है करता कौन समाज ध्वस्त?
किसने माहौल बिगाड़ा है?
किसकी काली करतूतों से
यह देश धधकता सारा है?
चिल्लाते जो जनतन्त्र-तन्त्र
"जन" को ही बढ़कर मारा है
बरगला "अशिक्षित" लोगों को
शिक्षा से किया किनारा है
है अकरणीय कर्मों के वश
अब शहर सुलगता सारा है
विद्यालय की पवित्र धरण
बनती जा रही अखाड़ा है
विद्वेष भरें अपनों में ही
जनता की दौलत नष्ट करें
लेते बापू का नाम मगर,
हिंसा का बजे नगाड़ा है
वह नहीं…
Added by Usha Awasthi on February 26, 2020 at 8:30am — 2 Comments
कितने ही द्रव्य और निधियाँ,
वह अपने गर्भ संजोती है
पर पल में मानव नष्ट करे
धरणी भी आख़िर रोती है
काटे नित हरे वृक्ष , पर्वत
माँ की काया श्री हीन करे
अपनी ही विपुल संपदा को
वह काँप-काँप कर खोती है
धरणी भी आख़िर रोती है
उसके ही सीने पर चढ़कर
जो भव्य इमारत खड़ी हुईं
उन बोझों से दबकर,थककर
अपनी कराह को ढोती है
धरणी भी आख़िर रोती है
उद्योग और कारखाने
हैं कचरा नदियों में डालें
इनमें घुल गए रसायन में
मारक क्षमता तो…
Added by Usha Awasthi on February 14, 2020 at 4:59pm — 6 Comments
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