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ब्राहम्ण
उषा अवस्थी
मान दिया होता यदि तुमने
ब्राम्हण को , सुविचारों को
सदगुण की तलवार काटती
निर्लज्जी व्यभिचारों को
उसको काया मत समझो ,
ज्ञान विज्ञान समन्वय है
द्वैत भाव से मुक्त, जितेन्द्रिय
सत्यप्रतिज्ञ , समुच्चय है
कर्म , वचन , मन से पावन
वह ब्रम्हपथी , समदर्शी है
नहीं जन्म से , सतत कर्म से
तेजस्वी , ब्रम्हर्षि है
मौलिक एवं अप्रकाशित
कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?
दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु
नम्बर वही मोबाइल पर
नाम कुछ और जोड़ लेते हैं
दुर्जनों के दुर्वचन
सहिष्णुता की परख होते हैं
अपनी नहीं खुद उनकी
औक़ात बता देते हैं
उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता
वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता
उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments
बच्चे सरायों में नहीं
घरों में पलते हैं
व्यक्तित्व आया से नहीं
माँओं से बनते हैं
कितनी जल्दी लोग
पाला बदल लेते हैं
आज गँठजोड़ किसी से
कल,किसी और से कर लेते हैं
क्या कहें वक्त के सफ़र को हम
जहाँ निजता की चाह होती है
एक ही घर के बन्द कमरों में
अब,मोबाइल से बात होती है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on March 6, 2021 at 1:25am — 8 Comments
समय का चक्र घूमता
कठोर काल झूमता
प्रचंड वेग धारता
दहाड़ता , पछाड़ता
लपक- लपक, झपक - झपक
नगर - नगर , डगर- डगर
मृत्यु - बिगुल फूँकता
बन के वज्र टूटता
सिरिंज की कमान से
वैक्सिन के वाण से
संक्रमण को नष्ट कर
यह कोरोना ध्वस्त कर
निकालेगा जहान से
खड़ा हुआ वो शान से
विजय ध्वजा को धारेगा
मनुज कभी न हारेगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on January 8, 2021 at 7:44pm — 2 Comments
जब तक इन्द्रिय भोग में होती मन की वृत्ति
सकल दुखों ,भव - ताप से मिलती नहीं निवृत्ति
उस असीम की शक्ति से संचालित सब कर्म
परम विवेकी संत ही जाने उसका मर्म
पंच तत्व के मेल से बनें प्रकृति के रूप
यह दर्पण , इसमें दिखे सत्य ,'अरूप' , अनूप
दृढ़ संकल्पित यदि रहे नित्य , सनातन जान
डरे भला क्यों मौत से ? अजर , अजेय , अमान
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on December 23, 2020 at 11:03am — 2 Comments
सुन्दर रचना केलिये हार्दिक अभिनंदन सुश्री उषा अवस्थिजी ।
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए.... |
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