धूम कोहरा
उषा अवस्थी
धूम युक्त कोहरा सघन
मचा हुआ कोहराम
किस आयुध औ कवच से
जीतें यह संग्राम?
एक नहीं, अनगिन बने
कारण, होती वृद्धि
रोके से रुकता नहीं
क्रम,कैसे हो शुद्धि?
ढेरों टन कोयला दहन
कर विद्युत संयंत्र
धूम्र उगलते; जो जाकर
मिले बूंद के संग
वही हवा फिर साँस से
पहुँचे मानव अंग
स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे
करे मनुज का…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 31, 2024 at 8:14am — 1 Comment
आवाज़ों से जंग
उषा अवस्थी
आज प्रदूषण बढ़ रहा
बदल-बदल कर रूप
बेचें झाड़ू , वाइपर
चला रिकाॅर्डिंग खूब
चाकू, कैंची औ छुरी
पैनी करते नित्य
मस्तक में छुरियाँ चलें
सुनें रिकॉर्डिंग तिक्त
चादर, कम्बल या बिकें
बने-बनाए वस्त्र
सतत रिकॉर्डिंग चल रही
कर वाणी निर्वस्त्र
असहनीय ध्वनियाँ,मचा
कानों में हुड़दंग
कैसे जीतेगा मनुज
आवाज़ो से…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 18, 2023 at 11:55am — No Comments
पूजा बता रहे हैं
उषा अवस्थी
पाले हैं,यौन कुंठा
पूजा बता रहे हैं
न जाने ऐसे लोग
किस राह जा रहे हैं?
रचते हैं ढोंग ज्ञान का
कल्मष बढ़ा रहे हैं
लिखते अभद्र भाषा
निर्मल बता रहे हैं
अपने ही मन की ग्रन्थि
सुलझा न पा रहे हैं
बच्चों औ युवजनों को
क्या -क्या सिखा रहे हैं?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 11, 2023 at 3:30am — 2 Comments
कुछ विचार
उषा अवस्थी
राष्ट्र, समाज, स्वयं का
यदि चाहें कल्याण
चोरी, झूठ, फरेब से
है पाना परित्राण
अशुभ निवारक गुरु चरण
वन्दन कर, छल त्याग
जिनके दर्शन मात्र से
पाप, शोक हों नाश
यह दुनिया हर निमिष पल
गिरे काल के गाल
क्यों पाना इसको भला?
जहाँ बचे न भाल
इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में
पृथ्वी का क्या मोल?
पल-पल, घिस-घिस छीजती
तोल सके तो…
ContinueAdded by Usha Awasthi on October 8, 2023 at 6:52pm — 3 Comments
कलियुग
उषा अवस्थी
ब्रह्मज्ञानी उपहास का पात्र है
अर्थार्थी सिर का ताज है
किसको ,कब पटखनी दें? आँखें गड़ाए हैं
मिलते ही मौका, धूल में मिलाए हैं
कलियुग है,चाहते अपनी वज़ाहत है
दूसरों को मारकर जीने की चाहत है
श्रमिकों की मेहनत का हक़, हक़ से लेते हैं
जन्म-जन्मांतर पापों को ढोते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 23, 2023 at 5:37am — 2 Comments
मन नहीं है
उषा अवस्थी
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
क्या कहें ? साहित्य के नाम पर
चलाए जा रहे व्यापार में
ख़रीद-फ़रोख़्त के बाज़ार में
बिकने का मन, नहीं है
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
इस दुनिया की इक छोटी सी बस्ती में
रहती हूँ, कोई बड़ी हस्ती नहीं हूँ मैं
शकुनी की शतरंजी झूठी इन चालों से
मोहरों के बेवजह…
ContinueAdded by Usha Awasthi on September 21, 2023 at 6:30am — 4 Comments
प्रकृति
उषा अवस्थी
पैसे देकर छ्प गए
ढोया झूठा भार
भावों के सौदागरों का
चलता व्यापार
अक्षर-अक्षर, शब्द हैं
"वाणी" का उपहार
सर्व- समर्थ अनन्त से
जिसके जुड़ते तार
ठुकराती दुर्गा उन्हे
जिनमें अहं विकार
सन्मार्गी को चल स्वयं
दिखलाती प्रभु- द्वार
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 15, 2023 at 1:50am — No Comments
सत्य ज्ञान
उषा अवस्थी
औरतों का जीना किया हराम
सरकार हो या विपक्ष
इन्टरनेट मीडिया दुर्लक्ष
पीटती ढोल सुबह -शाम
उन पर क्या बीतेगी?
लाज शर्म,किस तरह छीजेगी?
न लिहाज,न ईमान
बेशर्मी से करते बदनाम
सूचनाओं में विष घोल कर
शब्द-वाणों की शक्ति छोड़,बेईमान
चलाते, देश की इज्ज़त
उछालने का अभियान
महिलाओं पर कर अनुसन्धान
ज्ञान का करते बखान
स्वयं के मन…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2023 at 4:11pm — 4 Comments
फूलों की चोरी
उषा अवस्थी
फूलों की चोरी
बिना किसी परिश्रम
न पानी डालने का श्रम
न माली के खर्च का गम
पकी -पकाई रोटियाँ
खाने को तैयार
करने को प्रभु को प्रसन्न
सर्व सुलभ हथियार
कुछ कर्म करते-करते
स्वाभाविक हो चले हैं
वह पाप नहीं
आदत में शुमार,
लगते भले हैं
उनके लिए यह चोरी नहीं
साधारण सी बात है
दूसरों की मेहनत
उनकी ख़ैरात है
चोरी का आरम्भ ,
उस पेन्सिल के समान
जिस…
Added by Usha Awasthi on August 7, 2023 at 6:36pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
नेताओं के ड्राइवर बने हैं मालिक आप
ठेगें पर रखते नियम,इन्हे न पश्चाताप
दूजे घर के सामने गाड़ी करते पार्क
टोके तो दें चुनौती, शर्म न कोई लाज
घर के मालिक स्वयं ही उनको देते छूट
लाते ब्राण्डेड गाड़ियाँ, जश्न मनाते खूब
सारे नियम क़ायदे रख समाज के, ताक़
विधि -विधान, दस्तूर सब स्वयं बनाते घाघ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 15, 2023 at 12:08pm — No Comments
बाहर तपती धूप है , हवा चले , ले रेत
मनुज न फिर भी चेतता,होता जीव अचेत
भीषण बाढ़ें कर रहीं घर संग फसल तबाह
मेहनतकश किसान का,किस विधि हो निर्वाह?
शब्दों कर्मों में नहीं दिखता सामंजस्य
धरती जो है उर्वरा, कहते ऊसर व्यर्थ
उस पर वह बनवा रहे सुखद, मनोरम 'स्यूट'
बिल्डर , माननीय मिल,जमकर करते लूट
अभिभाषण में कह रहे पर्यावरण बचाव
कटवाएँ खुद तरु,विटप, देते नित्य सुझाव
कथनी करनी में बड़ा अन्तर…
ContinueAdded by Usha Awasthi on May 9, 2023 at 4:00pm — 1 Comment
उषा अवस्थी
क्षमाशीलता प्रेम की नदी बहे जिस गाँव
जिसको जो भी चाहिए, मिले वहीं उस ठाँव
करुणा औ वैराग्य का जिसमें जगा विवेक
जन्म उसी का इस धरा पर सार्थक,नि:शेष
जीवन अभिनय की विधा,चले श्रॄंखलाबद्ध
इच्छाओं , आशाओं की उलझन से सन्नद्ध
जिसने तोड़ी यह कड़ी , हुआ सत्य,उन्मुक्त
पार सभी सीमाओं से जाग्रत ,शुद्ध , प्रबुद्ध
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2023 at 10:00am — 1 Comment
Added by Usha Awasthi on April 19, 2023 at 10:22pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
सुबह सबेरे थैलियाँ लेकर निकलें आप
तोड़ पुष्प झोली भरें प्रभु-पूजा के काज
भगवन भूखे भाव के, न जानें यह मर्म
दूजों के श्रम की करें चोरी, नित्य अधर्म
माली से ले आज्ञा, गुरु के हित, सुखधाम
फुलवारी में जनक की, फूल चुने तब राम
मन्दिर में प्रभु को प्रसन्न करने के हित,भोर
गलियों - गलियों डोलते हैं प्रसून के चोर
पाले, पोसे , सींच कर बड़ा करे कोई और
नष्ट करें शाखाओं को खींच-खींच…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 13, 2023 at 5:58pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
वे घर ,जो दिखते नहीं
मिलते हैं धूल में, टिकते नहीं
पर "मैं" कहाँ मानता है?
विचारों के कुरुक्षेत्र में,खाक़ छानता है
एक के पश्चात दूसरा,तत्पश्चात तीसरा
ख़्यालों का समुंदर लहराता है
अनवरत प्रवाह में
डूबता, उतराता है
जीवन और मौत के बीच
झूल - झूल जाता है
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
मौलिमन क…
ContinueAdded by Usha Awasthi on February 4, 2023 at 7:14pm — 4 Comments
वसन्त
उषा अवस्थी
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 25, 2023 at 6:35pm — 5 Comments
उषा अवस्थी
सबकी अलग देनदारियां हैं
जीवन-नदिया में,
कर्म-नौका पर सवार
सुख-दुख से उत्पन्न
अपरिहार्य लहरें
सहने की मजबूरियां हैं
जब तरंगे "सम" पर आती हैं
पहुँचाती हैं सहजता से
इच्छित गन्तव्य तक
समस्त उलझनों के पार
कराती हैं, स्वयं से स्वयं का
"साक्षात्कार"
प्रकृति आईना दिखाने को सन्नद्ध है
नियमों से आबद्ध है
जो अपना धर्म
सदैव निभाती है
"मैं"…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 21, 2023 at 6:57pm — 6 Comments
उषा अवस्थी
"नग्नता" सौन्दर्य का पर्याय
बनती जा रही है
फिल्म चलने का बड़ा आधार
बनती जा रही है
"तन मेरा मैं
जो भी चाहे सो करूँ"
की विषैली सोच का उन्माद
गहती जा रही है
आधुनिकता शब्द का
नव अर्थ गढ़
संक्रमण का बीज धरती पर
सतत बिखरा रही है
मार्ग मध्यम छोड़कर
है दिन-ब-दिन
अमर्यादित आचरण
विस्तार करती जा रही है
"नग्नता" सौन्दर्र का…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 7, 2023 at 11:30am — 4 Comments
उषा अवस्थी
यह कोरा उपदेश नहीं
कोई झूठा संदेश नहीं
सत्य ही आधार है
न स्त्री, न पुरुष
एक निराकार है
मौत हमारा क्या बिगाड़ेगी?
हम उससे डरें क्यों?
भूत हो, वर्तमान हो,भविष्य हो
हम काल के महाकाल हैं
सदा चैतन्य; नहीं इन्द्रजाल हैं
आत्मा कहाँ मरती है?
अतः इस जगत की
वैतरणी के पार
सच्चिदानन्द में समाओ
शोक से परे हो जाओ
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 24, 2022 at 11:14am — No Comments
उषा अवस्थी
जहाँ अपना कुछ नहीं
सब पराया है
न जाने कौन सा
आकर्षण समाया है?
चारों ओर मारा-मारी है
धन-दौलत की खुमारी है
प्रतिस्पर्धा तारी है
अहंकार पर सवारी है
प्रति पल बदलाव है
न ही ठहराव है
इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाए
फिर आगे क्या?
सब यहीं छोड़ जाना है
पाँच तत्वों का ताना-बाना है
कहीं स्थिरता नहीं
केवल आना है,जाना है
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 16, 2022 at 10:46am — 1 Comment
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