समय का चक्र घूमता
कठोर काल झूमता
प्रचंड वेग धारता
दहाड़ता , पछाड़ता
लपक- लपक, झपक - झपक
नगर - नगर , डगर- डगर
मृत्यु - बिगुल फूँकता
बन के वज्र टूटता
सिरिंज की कमान से
वैक्सिन के वाण से
संक्रमण को नष्ट कर
यह कोरोना ध्वस्त कर
निकालेगा जहान से
खड़ा हुआ वो शान से
विजय ध्वजा को धारेगा
मनुज कभी न हारेगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 8, 2021 at 7:44pm — 2 Comments
जब तक इन्द्रिय भोग में होती मन की वृत्ति
सकल दुखों ,भव - ताप से मिलती नहीं निवृत्ति
उस असीम की शक्ति से संचालित सब कर्म
परम विवेकी संत ही जाने उसका मर्म
पंच तत्व के मेल से बनें प्रकृति के रूप
यह दर्पण , इसमें दिखे सत्य ,'अरूप' , अनूप
दृढ़ संकल्पित यदि रहे नित्य , सनातन जान
डरे भला क्यों मौत से ? अजर , अजेय , अमान
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 23, 2020 at 11:03am — 2 Comments
किसी समय मानवी सनक से
यह धरणी शापित ना हो
करे ध्वंस क्षण में अवनी का
वह कुशस्त्र चालित ना हो
ज्ञान,शक्ति,आनन्द त्रिवेणी
की धारा बाधित ना हो
जाति-धर्म की सीमाओं में
बंध कोई त्रासित ना हो
रहे सदा वसुधा का आँचल
हरा - भरा तापित ना हो
फैले नव प्रकाश जीवन में
योग क्षेम नाशित ना हो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 6, 2020 at 9:43am — 2 Comments
उस असीम , विराट में
इस सृष्टि का संगीत
ताल,लय,सुर से सुसज्जित
नित्य नव इक गीत
नृत्य करती रश्मियाँ
उतरें गगन से भोर
मृदु स्वरों की लहरियों पर
थिरकतीं चँहु ओर
गगन पर जब विचरता
आदित्य , ज्योतिर्पुंज
विसहँते सब वृक्ष,पर्वत,
नदी ,पाखी , कुन्ज
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 4, 2020 at 7:30pm — 3 Comments
द्वापर युग में कृष्ण ने
पान्डव का दे साथ
हो विरुद्ध कुरुवंश के
रचा एक इतिहास
कलियुग की अब क्या कहें?
जिन्हे मिला अधिकार
धन-बल के अभिमान में
प्रति पल चढ़े ख़ुमार
हक़ जिसका हो,मार लें
जाति धर्म के नाम
आपस में झगड़ा करा
आप बनें सुल्तान
वंशवाद का घुन लगा
आज हमारे देश
करे खोखला राष्ट्र को
धर नेता का वेष
राष्ट्र एकता की उन्हे
तनिक नहीं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on November 29, 2020 at 9:02am — 2 Comments
जब तब अजिया कहत रहिं
दूध पूत हैं एक
जैस पियावहु दूध तस
बढ़िहै ज्ञान विवेक
गइयन केरी सेवा कयि
करिहौ जौ संतुष्ट
पइहैं पोषण पूर जब
हुइहैं तब वह पुष्ट
अमृत जैसन दूध बनि
निकसी बहुत पवित्र
रोग दोष का नास करि
रखिहै सबका तुष्ट
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 27, 2020 at 7:22pm — 2 Comments
परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त
कण - कण में सर्वत्र
विन्दु रूप में क्यों भला
बैठेगा अन्यन्त्र ?
सबमें वह , उसमें सभी
चहुँदिशि उसकी गूँज
क्या यह संभव है कभी
सिन्धु समाए बूँद ?
ज्ञान नेत्र से देखते
संत , विवेकी व्यक्ति
आत्मा ही परमात्मा
घटे न उसकी शक्ति
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 18, 2020 at 10:53pm — 4 Comments
धरणी को बरबाद कर
चन्द्र करो जा नष्ट
फिर ढूँढो घर तीसरा
जहाँ न कोई कष्ट
यह क्रम चलता ही रहे
मानव ही जब दुष्ट
आपस में लड़ कर करे
सर्व विभूति विनष्ट
समझे मालिक स्वयं को
बन बैठा भगवान
हिरनकशिपु सम सोच रख
औरों का अपमान
करते बम के परीक्षण
खुशी मने ज्यों पर्व
राम , कृष्ण सदृश कोई
आए , तोड़े गर्व
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 3, 2020 at 7:26pm — 3 Comments
कपड़ा-लत्ता बाँधि कै
जावैं अपने देस
कितने दिनन बिता गए
तबहुँ लगै परदेस
पहुचैं अपने द्वार-घर
लक्ष्य यही बस एक
जा खेती - बाड़ी करैं
आलस करैं न नेक
धूप - ताप मा बिन रुके
चले जाँय सब गाँव
सोचत जात , थमें नहीं
मिले जो चाहे छाँव
नदियन नाला केर सब
कचरा देब हटाय
लहर-लहर बहियैं सबै
धरती पियै अघाय
बबुआ से कहिबै चलौ
गइया लेइ खरीद
दूध, दही , मट्ठा…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2020 at 11:27pm — 2 Comments
झाँका , झाँका , देखो झाँका
चाँद हमारे अँगना
आने वाला है कोई
बाजे मेरा कँगना
हो, हो , हो , हो
झाँका, झाँका , देखो झाँका
सुहाना समां है
खुला आसमां है
करतीं ठिठोली
तारों की टोली
झूमे , झूमे , देखो झूमे
आज हमारे अँगना
आने....
बहे पुरवइया
डोले मन की नैया
मौसम की घड़ियाँ
जादू की छड़ियाँ
फेरें , फेरें , जादू फेरें
आज हमारे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments
पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ
देखें निज परिवार
घर में बूढ़ी सास हैं
और श्वसुर लाचार
शिशु जिनके हैं पालने
सेवा की दरकार
आया पर छोड़ें नहीं
सहें स्वयं सब भार
गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह
जिस विधि कोई कुम्हार
खोट सुधार सहन करें
चाहे विघ्न हजार
सदा करें निष्काम हो
सबके सुख की वृद्धि
प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की
होती तभी समृद्धि
घर कुटुम्ब के हेतु जो
अपना सुख दे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 19, 2020 at 7:24pm — 8 Comments
जब मन वीणा के तारों पर
स्वर शिवत्व झन्कार हुआ
चिरकालिक,शाश्वत ,असीम
प्रकटा , अमृत संचार हुआ
निर्गत हुए भविष्य , भूत
वर्तमान अधिवास हुआ
कालातीत, निरन्तर,अक्षय
महाकाल का भास हुआ
शव समान तन,आकर्षण से
मन विमुक्त आकाश हुआ
काट सर्व बन्धन इस जग के
परम तत्व , निर्बाध हुआ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 3, 2020 at 10:30am — 4 Comments
सत्य सुनावै मनई कोउ
भरि साँसैं जमुहाईं
झूठि जहाँ पर चलि रहा
हुइ चैतन मुसुकाहिं
बहुतै मजा मिलै जहाँ
चुगली खावैं लोग
नमक, खटाई, मिरचि जब
चटकि , तबहिं मन मोद
का कलजुग ना दिखावै
सत्पथ धरहि जो पाँव
तपति मरूथल रेत जसि
दीखै कहूँ न छाँव
मौनी अब तौ साधिहौं
वाहै मा आनन्द
ई सांसारिक जालि मा
उरझै कवनेउ मंद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments
पैसों से क्या जान को
हम पाएगें तोल ?
सदा - सदा को बुझ गए
जब चिराग़ अनमोल
किन-किन के थे वरद हस्त
जो पनपी यह खोट
खोज-खोज उनकी करें
क्यों ना जड़ पर चोट ?
इस बढ़ती विष बेल पर
यदि ना डली…
ContinueAdded by Usha Awasthi on July 4, 2020 at 5:50pm — 6 Comments
रिमझिम - रिमझिम बदरा बरसे
अजहूँ न आए पिया रे..
ये बदरा कारे - कजरारे
बार- बार आ जाएँ दुआरे
घर आँगन सब सूना पड़ा रे
सूनी सेजरिया रे
रिमझिम....
तन-मन ऐसी अगन लगाए
जो बदरा से बुझे न बुझाए )
अब तो अगन बुझे तबही जब
आएँ साँवरिया रे
रिमझिम...
छिन अँगना छिन भीतर आऊँ
दीप बुझे सौ बार जलाऊँ
पिया हमारे घर आएगें
छाई अँधियारी रे
रिमझिम .....
मौलिक…
ContinueAdded by Usha Awasthi on June 30, 2020 at 9:00pm — 2 Comments
कितने सालों से सुनें
शान्ति - शान्ति का घोष
अपने ही भू- भाग को
खो बैठे , बेहोश
जब दुश्मन आकर खड़ा
द्वार , रास्ता रोक
क्या गुलाम बन कर रहें ?
करें न हम प्रतिरोध
ज्ञान - नेत्र को मूँद लें
खड़ा करें अवरोध
गीता से निज कर्म - पथ
का , कैसै हो बोध ?
ठुकराते ना सन्धि को
कौरव कर उपहास
कुरूक्षेत्र का युद्ध क्यों ?
फिर बनता इतिहास
सोलह कला प्रवीण…
ContinueAdded by Usha Awasthi on June 25, 2020 at 10:30am — No Comments
बड़े-बड़े देखे यहाँ
कुटिल , सोच में खोट
मर्यादा की आड़ ले
दें दूजों को चोट
ऐसे भी देखे यहाँ
सुन्दर, सरल , स्वभाव
यदि सन्मुख हों तो बहे
सरस प्रेम रस भाव
कलियुग इसको ही कहें
चाटुकारिता भाय
तज कर अमृत का कलश
विष-घट रहा सुहाय
गिनें , गिनाएँ , फिर गिनें
नित्य पराए दोष
एक न अपने में दिखे
खो बैठे जब होश
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on June 23, 2020 at 1:00am — 6 Comments
तोड़ कर अनुबन्ध अरि ने
देश पर डाली नज़र
उठा कर अब शस्त्र अपने
भून दो उसका जिगर
छल ,फरेब, असत्य ,धोखे का
करे अभिमान , खल
वह भी अब देखे हमारे
सैनिकों का शौर्य बल
शान्ति,सहआस्तित्व हो, स्थिर
बढ़े जग में अमन
वास्ते इस , धैर्य को समझा
कि हम कायर वतन
जो परायी सम्पदा को
हड़पने , रहता विकल
रौंद दो अहमन्यता
षड़यन्त्र हो उसका विफल
शत्रु को है दण्ड देने…
ContinueAdded by Usha Awasthi on June 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments
कहते हैं मानसून अब
देगा बहुत सुकून
कैसे सहेजेगी भला
यह बारिश की बूँद?
ताल-तलैया , झील , नद
चढ़ें , अतिक्रमण भेंट
दोहन होता प्रकृति का
अनुचित हस्तक्षेप
करें बात जो न्याय की
वही कर रहे घात
करनी कथनी से अलग
ज्यों हाथी के दाँत
मौलिक एवंअप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on June 17, 2020 at 12:43pm — 2 Comments
खेल लेने दो इन्हे यह बचपने की उम्र है
गेंद लेकर हाथ में जा दृष्टि गोटी पर टिकी
लक्ष्य का संधान कर , एकाग्रता की उम्र है
खेल.....
गोल घेरे को बना हैं धरा पर बैठे हुए
हाथ में कोड़ा लिए इक,सधे पग धरते हुए
इन्द्रियाँ मन में समाहित, साधना की उम्र है
खेल.....
टोलियों में जो परस्पर आमने और सामने
ज्यों लगे सीमा के रक्षक शस्त्र को हैं तानने
व्यूह रचना कर समर को जीतने की उम्र है
खेल.....
मौलिक…
ContinueAdded by Usha Awasthi on May 27, 2020 at 7:59pm — 6 Comments
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