बाहर तपती धूप है , हवा चले , ले रेत
मनुज न फिर भी चेतता,होता जीव अचेत
भीषण बाढ़ें कर रहीं घर संग फसल तबाह
मेहनतकश किसान का,किस विधि हो निर्वाह?
शब्दों कर्मों में नहीं दिखता सामंजस्य
धरती जो है उर्वरा, कहते ऊसर व्यर्थ
उस पर वह बनवा रहे सुखद, मनोरम 'स्यूट'
बिल्डर , माननीय मिल,जमकर करते लूट
अभिभाषण में कह रहे पर्यावरण बचाव
कटवाएँ खुद तरु,विटप, देते नित्य सुझाव
कथनी करनी में बड़ा अन्तर दिखे विशेष
कुटिल बुद्धि, हिंसा,अमर्ष, ज़हरीला परिवेश
(कुछ दिनों पूर्व यह समाचार था कि खेती की भूमि को ऊसर बता कर,बिल्डर मिली भगत से 'कन्सट्रकशन' कार्य कर रहे हैं। उसी का परिणाम यह रचना है।)
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया उषा जी, परिवेश पर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
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