ये शब्द समर्पित उन भावनाओं को,
जो अव्यक्त रह गयी.
उस रुपहले संसार को,
जो ख्वाब बनकर रह गया.
ये शब्द समर्पित उस रिश्ते को,
जो बेनाम रह…
ContinueAdded by RAJESH BHARDWAJ on February 4, 2013 at 5:44pm — 4 Comments
गणतंत्र की जय !
गणराज्य की जय !
गणतन्त्र की सरहदें,
, गणराज्य की सरहदें,
जो तय की थी हमने,
वो टूट क्यों जाती हैं,
प्रजा के जुटने पर ?
प्रजातंत्र / लोकतंत्र /गणतन्त्र !
प्रजा से डरता क्यों है ?
उसे तो हमने ही बुना था,
अपने लिए !
आज वो खोखला हो गया है !
या खोखला कर दिया गया है !!
वो अपनी ही शक्ति से,
गण से प्रजा से,
कतराता क्यों है ?
शायद गणतंत्र के रखवालों ने,
बदल दी…
ContinueAdded by RAJESH BHARDWAJ on February 1, 2013 at 9:16pm — 4 Comments
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