गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.
जला के खाक ही कर दे जहान को आशिक़,
अगर उतार दे अपना जुनून काग़ज़ पर..
ग़ज़ल का एक भी मिसरा नहीं कहा मैनें,
थिरक रहा है किसी का फुसून काग़ज़…
Added by Nirmal Nadeem on February 25, 2015 at 12:00pm — 24 Comments
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