गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.
जला के खाक ही कर दे जहान को आशिक़,
अगर उतार दे अपना जुनून काग़ज़ पर..
ग़ज़ल का एक भी मिसरा नहीं कहा मैनें,
थिरक रहा है किसी का फुसून काग़ज़ पर.
कहीं ये अक्स - ए- तमन्ना ही तो नहीं तेरा,
उभर के आया है जो सर निगून काग़ज़ पर..
तमाम रात की तन्हाइयों से छूटा तो
तड़प उठा है वफ़ा का जुनून काग़ज़ पर..
"नदीम" को भी बुलाना अदब की महफ़िल में,
सजा के लाता है दर्द - ए - दुरून काग़ज़ पर..
निर्मल नदीम (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
Pratibha Tripathi bahan shukriya aapka.
AAP SAB KA TAH EDIL SE SHUKRAGUZAAR HU.
गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.
जला के खाक ही कर दे जहान को आशिक़,
अगर उतार दे अपना जुनून काग़ज़ पर..
ग़ज़ल का एक भी मिसरा नहीं कहा मैनें,
थिरक रहा है किसी का फुसून काग़ज़ पर.
बहुत सुन्दर शेर हुए हैं नदीम जी ,ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी उम्मीद करती हूँ की आप आगे भी भी ओबिओ को अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित ग़ज़लों से समृद्ध करेंगे
आपको हार्दिक बधाई
Janab Dharmendra Kumar Singh Sahab... bahut bahut nawazish aapki.
Janab Sushil Sarana Sahab... bahut bahut shukriya. aapke mashwire pe amal zaroor karunga. shukriya.
Aadarneey Mithilesh Sir.... koi ustaad nahi hu main... mai to faqat ek taalib e ilm hu. Seekhna hi meri fitrat hai. shukriya aapka.
MAHIMA SHREE SAHIBA.... bahut bahut shukriya aapka.
ओबीओ के नियमों के अनुसार मुझे इस पूर्वप्रकाशित ग़ज़ल पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। पर ग़ज़ल अच्छी है और आपकी पहली पोस्ट है इसलिए दिली दाद कुबूल कीजिए।
गिरा के अपनी ही आँखों से खून काग़ज़ पर,
तलाश करता रहा दिल सुकून काग़ज़ पर.
वाह आदरणीय वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने … हर शे'र की अपनी महक है अपना अंदाज़ है एक ऐसा लुत्फ़ है जो हर पाठक पढ़ते वक्त महसूस करता है . .... बहरहाल इस खूबसूरत और दिलकश पेशकश के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं …अच्छा होता अगर काफिये में प्रयुक्त कठिन लफ़्ज़ों का भावार्थ भी
साथ साथ बता दिया होता .... खैर इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
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