जो कल उन्मुक्त बेखौफ़ चलती थी
आज अकेले खामोश बैठी है
कल तक जिसका अलग अस्तित्व था
अब दुसरो से पहचान ही उसका अस्तित्व होगा
कल तक जो हर जिम्मेदारी से बचती थी
मदमस्त उल्लासित हो चहकती थी
अब दूसरो की जिम्मेदारी संभालेगी
अपनी हँसी लुप्त कर दूसरो को सँवारेगी
दुल्हन के सुर्ख लाल जोड़े में
एक बंदनी की भाँति लग रही
फ़ेरो की पवित्र अग्नि में
उसकी ख्वाहिशे सुलग रहीं
सर पर जड़ित स्वर्ण टीका
उसके विषाद मे…
ContinueAdded by Mayank Sharma on March 27, 2011 at 3:00pm — 1 Comment
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