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Pallav Pancholi's Blog – May 2011 Archive (1)

इक मासूम ग़ज़ल

हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है

 मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है

 

मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर

ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखाता है

 

पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी

मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है

 

सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस

हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है

 

"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम

इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है

Added by Pallav Pancholi on May 25, 2011 at 12:00am — 3 Comments

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