Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:14pm — 1 Comment
टूटने का दर्द होता एक समान ...........रिश्ता नामवर हो या के अनाम
चुभन तो मिट जाती है हर शूल की....शालती राहती उम्र तमाम....
घाव तो भर जाते है हर चोट के.... रह जाते है मगर निशान....
बेवफ़ाई तो भूल चुके उनकी मगर....भूल ना सके उनके अहसान
कद्र वो क्या समझते हमारी वफा का...जफ़ाओ का जो रखते सामान
क़ातिल तो फकत क़ातिल होता है...उसका न कोई धर्म न ईमान
##### प्रदीप सिंह चौहान "अनाम"
Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:11pm — 1 Comment
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