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शतरंज में रिश्तों की मैं हारा नहीं होता
अपनों को बचाने में जो उलझा नहीं होता
यादें तेरी ख़ुश्बू से न दिन रात महकतीं
लम्हा जो तेरे लम्स का ठहरा नहीं होता
भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल
ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता
शाख़ों से कहीं उसकी तुम्हें झाँकता बचपन
आँगन का शजर तुमने जो काटा नहीं होता
नफ़रत के समर आयेंगे नफ़रत के शजर पर
ऐ काश बशर बीज ये बोया नहीं होता
गर…
ContinueAdded by anjali gupta on August 4, 2020 at 12:30am — 5 Comments
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