आदरणीया अंजलि गुप्ता जी, तरही मुशायरे में मेरी ग़ज़ल में शिरकत का दिल से शुक्रिया. समयाभाव था, कमेंट बॉक्स बंद हो चुका है. इसलिए यहाँ से आभार प्रकट कर रहूँ हूँ.सादर
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आँखों मे छुपी अश्कों की जागीर का मतलब
समझेगी न ये दुनिया मेरी पीर का मतलब
चल मुझसे नहीं तुझको महब्बत ज़रा समझा
वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब
जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर
क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब
थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे
वो बीच सभा खिंचते हुए चीर का मतलब
इस जिस्म के हर हिस्से में बाँधे हूँ मैं ज़ेवर
कैसे मुझे मालूम हो जंजीर का…
Posted on November 3, 2020 at 11:30pm — 8 Comments
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शतरंज में रिश्तों की मैं हारा नहीं होता
अपनों को बचाने में जो उलझा नहीं होता
यादें तेरी ख़ुश्बू से न दिन रात महकतीं
लम्हा जो तेरे लम्स का ठहरा नहीं होता
भीतर न उसे आने कभी देता मेरा दिल
ख़ंजर पे तेरा नाम जो लिक्खा नहीं होता
शाख़ों से कहीं उसकी तुम्हें झाँकता बचपन
आँगन का शजर तुमने जो काटा नहीं होता
नफ़रत के समर आयेंगे नफ़रत के शजर पर
ऐ काश बशर बीज ये बोया नहीं होता
गर…
ContinuePosted on August 4, 2020 at 12:30am — 5 Comments
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