बहर
1212-1122-1212-22
मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।
तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।
कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।
है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।
की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।
सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।
मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।
अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।
गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।
जो…
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 13, 2018 at 9:30pm — 5 Comments
बह्र - 2122-1221-22
इतना उलझा है आदम बसर में।।
खुद से पूछे वो है किस सफर में ।।
क्या समझ पाएगे रात भर में।।
फर्क है इस नजर उस नजर में।।
ना बदल पाऊं बिलकुल न बदले।
पर है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर में।।
अपनी मंजिल से है लापता जो ।
चीखता फिर रहा, रह-गुजर में।।
हर मुसाफिर की कोशिस यही बस।
सब सलामत रहे मेरे घर में।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक- अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
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