शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।
जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।
इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।
कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।
डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।
इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।
जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१
जाने क्या कह रहा है .....
गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।
भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।
दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।
मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।
यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती गगन।।...२
जाने क्या कह रहा है ...
मुश्कुराहट जो चहरे में अब आ रही।
हक है जन्मों का जैसे ये दर्शा रही।।
इक मुकम्मल सी तश्वीर अब आप की ।
उलझनें से रही आग बरपा रही।
केशुओं की शरारत ये भीगा बदन।।...३
जाने क्या कह रहा है ....
तुम न होते तो होता मेरा जाने क्या ।
गुल किताबों में था एक सूखा हुआ।।
तुम जो आये मेरी साँसें चलने लगी।
अब तो बेस्वाद हालाऐं लगने लगी।
जबसे हासिल हुई लब की तेरे छुअन।...४
जाने क्या कह रहा है ....
ख्वाबिदा हो गए हम तेरे प्यार में ।
जिंदगी बन गए आप ओ सांवरे।।
एक पल में बदल सी गयी जिंदगी।।
ये इनायत खुदा की कसम आप की।
बिन पिये, बावला, झूमें ये तन बदन।।...५
जाने क्या कह रहा है ....
आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बिन्दौरी जी अच्छी रचना के लिए बधाई
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।
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